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________________ -- - - -और म० बुद्ध .[१५९ और भेदविज्ञान नहां एकवार प्राप्त हुआ कि वहां फिर सम्यक् मार्गमें दिवस प्रति दिवस उन्नति करते जाना अवश्यम्भावी है। जैनाचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी कहते हैं 'गुरूपदेशादभ्यासात्संवित्तेः स्वपरांतरं। जानाति यः स जानाति मोक्षसौख्यं निरंतरम् ॥३३॥ भावार्थ-जिसने आत्मा और पुद्गलके स्वरूपको जानकर भेदविज्ञान प्राप्त करलिया है चाहे वह गुरूकी कपासे प्राप्त किया हो अथवा वस्तुओंके स्वभाव पर बारम्वार ध्यान करनेसे या आभ्यन्तरिक आत्मदर्शनमे पाया हो-वह आत्मा मोक्ष सुखका उपभोग सदैव करता है। भगवान महावीरने संसारजालसे छूटकर मोक्षलाम करनेका मार्ग सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र कर सयुक्त बतलाया था। व्यवहार दृष्टिसे सम्यग्दर्शन पूर्वोल्लिखित जैन तत्वोमें श्रद्धान करना है। इन्हीं तत्वोंका पूर्ण ज्ञान सम्यग्ज्ञान है । और जैनशास्त्रमें बताये हुये आचार नियमोका पालन करना सम्यग्चारित्र है। किन्तु निश्चय दृष्टि से यह तीनों क्रमशः आत्माका श्रद्धान्, ज्ञान और स्वरूपकी प्राप्ति है। सचमुच निश्चय सम्यक्चारित्र सिवाय आत्मसमाधिके और कुछ नहीं है । व्यवहारदृष्टि निश्चयका निमित्त कारण समझना चाहिये। व्यवहार सम्यग्चारित्र दो प्रकारका है:-(१) एकदेश गृहस्थोके लिये और (२) पूर्ण जो साक्षात् मोक्षका कारण है साधुओंक लिये । गृहस्थ सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानको धारण करता हुआ अहिसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रइसे सम्यग्चारित्रका अभ्यास प्रारम्भ करता है । यद्यपि इससे नीचे दर्नेका गृहस्थ मात्र
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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