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________________ १५८] [ भगवान महावीर वीरकी वन्दनाको विपुलाचल पर्वतको जा रहे थे, तब एक मेंढकके मी भाव भक्तिसे भर गए थे और वह भी भगवानके समोशरणकी ओर पूज्य भावोंका भरा हुआ जा रहा था कि मार्गमें राजाके हाथीके परसे दबकर मर गया और इस पुण्यभावसे वह देव हुआ। चौद्धोंके यहां भी एक ऐसी ही कथा "विशुद्धि माग्ग" नामक ग्रंथ में कही गई है।' फिर दोनों ही मत यह मानते हैं कि देवगतिमें भी देवगण अपने शुभाशुभ परिणामोंके अनुसार सुखदुखका अनुभव करते हैं, किन्तु दोनोंमें ऐसे भी देव माने गये हैं जो मोहके अंभावमें दुःखका अनुभव करते ही नहीं है तथापि दोनोंही धर्मोंमे देवोंके मरण समयका वर्णन भी प्रायः एकसा है। बौद्ध शास्त्र कहते हैं कि स्वर्गसे चय होनेके कुछ ही पहिले उस देवके (१) वस्त्र अपनी स्वच्छता खो बैठते हैं, (२) मालायें और उसके अन्य अलकार मुरझाने लगते हैं, (३) शरीरसे ओसकी तरहका पसीना निकलने लगता है, (४) और महल जिसमें उसका निवास होता है वह अपनी सुन्दरता गवा देता है। ( Manual of Buddhism p 141) जैनशास्त्रोमें भी मरणके छै महीने पहिलेसे माला मुरझानेका उल्लेख मिलता है। साथ ही जैनसिद्धान्तमे देवोके अव. धिज्ञानका होना माना गया है, परन्तु बौद्धोंके यह स्वीकृत नहीं है। इसप्रकार इन उक्त गतियों में परिभ्रमण करती हुई संसारा आगये दुख और पीडाको भुगनती हैं। किन्तु भगवान कहते हैं कि जो सत्यकी उपासना करते है और स्वध्यानमें लवलीन रहते है वे भेदविज्ञान ( Discrimuating sight) को पाजात ह १. पूर्व पृष्ठ १९.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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