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-और म० बुद्ध
[१५७ हैं। बुद्धने जो रूपलोकके स्वर्ग बताये थे, वह भी इस ही प्रकारके हैं। जैनसिद्धान्तके लौकान्तिक देव जो ५ वे स्वर्गके सर्वोपरि भागमें अवस्थित ब्रह्मलोकमें रहते हैं और जो आत्मोन्नति विशेष कर चुके है कि दूसरे भवसे ही मोक्षलाभ करेंगे, वह भी बौद्धोके ब्रह्मलोकके देवोके समान हैं । बौद्ध कहते हैं कि यह देव ब्रह्मलोकमे विशेष ध्यान करनेके उपरान्त पहुंचते हैं। किन्तु इतनी सदृशता होनेपर भी बौद्धोने जितने स्वर्ग बताये है उतने जैनसिद्धान्तमें स्वीकृत नहीं है; यद्यपि एक स्थानपर उनके यहां भी १६ ही बताये गये है । सचमुच बौद्धशास्त्रोमे इनकी कोई निश्चित संख्या नहीं मिलती है वे सात, आठ, सोलह और सत्तरह भी बताये गये है। किन्तु इतनेपर भी यह स्पष्ट है कि बौद्धोके स्वर्ग विवरणमें भी जैनधर्मकी छाप लगी दृष्टिगत होती है। यहांपर उनका तुलनात्मक पूर्ण विवेचन करना कठिन है। यद्यपि यह स्पष्ट है कि अन्ततः बौद्ध और जैन दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि स्वर्गलोकमें वही जीव जन्मते है जो विशेष पुण्य उपार्जन करते है । आत्मवाद परोक्षरूपमें म० बुद्धको भी अस्पष्टरूपसे स्वीकार करना पड़ा था, यह हम देख चुके हैं। जैनसिद्धान्तमें स्वर्गलोकसे मोक्षलाभ करना असभव बतलाया है; बौद्ध देवोंद्वारा निर्वाणलाम मानते है । किंतु यह वात दोनों ही मानते है कि देवोंमें विक्रिया शक्ति है और हेयसे हेय अवस्थाका जीव स्वर्ग सुखका अधिकारी हो सक्ता है। जैनशास्त्रोमें कथा प्रचलित है कि जब राजा श्रेणिक भगवान महा
१. हेवेन्स एण्ड हेल्स इन बुद्धिस्ट पर्सपक्टिव पृष्ठ ८०...२ पूर्व पृष्ठ २ ३. पूर्व पृष्ठ ३४.