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[ भगवान महावीरकि जैन धर्मका प्रभाव उनके जीवनपर किस अधिकतासे पड़ा था। दोनों मतोमें व्यवहृत शब्द भी जैसे आचार्य, उपाध्याय, आश्रव, संवर, गंधकुटी, शासन आदि प्रायः एकसे हैं, यद्यपि यह बौद्ध धर्ममें बहुत करके अपने शाब्दिक भावको खो बैठे हैं। ___नोंके विवरणकी तरह स्वर्गलोकके विवरणका भी किंचित सामञ्जस्य जैन मानतासे वैठ जाता है। भगवान महावीरने चार प्रकारके देव वतलाये थे, (१) भवनवासी (२) व्यन्तर (३) ज्योतिष्क (४) और वैमानिक । इन प्रत्येकके दस दरें हैं; इन्द्र, सामानिक त्रायविश, पारिपद, आत्मरक्षक, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, अभियोग्य, और किल्विषक । बौद्धोंके यहा भी प्रथम प्रकारके देव 'भुम्मदेव' के नामसे ज्ञात हैं। दूसरे प्रकारके प्रेत, असुर आदि है। तीसरे प्रकारके सूर्य, चद्र, आदि बतलाये थे
और अन्तिम प्रकारके देव वह समझना चाहिये जो कामश्वरलोक आदिके विमानोंमे मिलते हैं। इनमें अन्तिम प्रका• रके देव ही स्वर्गलोकमें विमानोमें रहते है। जैनसिद्धान्तमें वतलाया गया है कि यह विमान मेरुपर्वतके तनिक अन्तरसे ही तराजूके पलडोकी तरह दो २ ऊपर २ अवस्थित है । यह कुल १६ है । इनके कार ग्रैवेयक, अनुदिश, अनुत्तर और सर्वार्थसिन्दि विमान है । इन ग्रेवेयकाढिके निवासी देव सब पुरुषलिङ्ग ही है और कामवासनासे रहित हैं । यह अहमिन्द्र कहलाते
१ चौदों यहा भी यही क्रम कुछ २ मिटता है। उनके यहां 'प्रायविश' न मा एक अलग ही स्वर्ग ६. २. दे. हे. ६० बु० ५० पृष्ट ७.३ पूर्व पृष्ठ ४३. ४. पृष्ट ३१.५ पूरे प्रष्ट २०