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________________ १५४ ] [ भगवान महावार मरते हैं । इस निगोदमें से हमेशा नियमानुसार जीव निकलते रहते है और वे उस कमीको पूरी कर देते है जो जीवोके मुक्त होजानेसे होती है । इसतरह यह जीवराशि कभी निबटती नही । यूंही अनादिनिधन है । जीव त्रस नाडीमे भ्रमण करते हैं । जैनोके तीन लोकके नकशे में बताये हुये 'मध्यलोक' में ही वे सब ससार क्षेत्र है जिनका उल्लेख हम ऊपर कर चुके है। और इसके 'ऊर्ध्व' और 'अघो' लोकमे क्रमश. स्वर्ग और नर्क अवस्थित हैं । बुद्धने भी लोकको तीन 'अवचारो' (Regions) में अथवा 'धातुओं' में विभक्त बतलाया है: (१) काम धातु (२) रूप धातु और (३) अरूप धातु ।' यहां भी जैन सिद्धान्तकी सादृश्यता दृष्टि पडती है । इसके अतिरिक्त, बौद्ध शास्त्रोमें नर्कगतिके और नर्कों के जो वर्णन, पीड़ायें, वैतरनी नदी, इसे दुग्गति बतलाना, प्रेतों- असुरोका स्थान, इत्यादि जैन धर्मके अनुसार बताये हैं । " किन्तु इतनेपर भी बुद्धदेवने नर्क उतने नहीं बतलाये है जितने जैन धर्म में स्वीकृत हैं । भगवान महावीर ने नर्क सात बताये है और उनकी पृथ्वियोंके नाम यो कहे है: (१) रत्नप्रभा - आलोक इसका रत्न कैसा है और यह गर्म है । । (२) शर्कराप्रभा -,, (३) वालुकाप्रभा,” (४) पङ्कप्रभा - " (५) धूमप्रभा - " "" "7 " शकर रेत पङ्क धुयें "" "7 33 99 37 "" "" "" 37 "" 37 "} 1 I "" "" "" "" "" केवल ३ लाख पटलोंमें- शेष ठडा है । १. हेवन्स एन्ड हेल्स इन बुद्धिस्ट पर्सपेकिव पृष्ट ८३. २. पूर्व पृष्ट ९२से जैन मानताकी तुलना करो. तत्वार्थसूत्र अ० ३
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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