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________________ -और म० वुद्ध] [१५३ बातकी अवनति चालू रही और समयानुसार तीर्थकर भगवान एवं अन्य महापुरुष होते रहे । फिर भगवान महावीरके निर्वाणलाभसे कुछ महीने बादसे ही यह पंचमकाल प्रारंभ होगया था। इसमें भी शासक्रम चालू है। इसके अन्तमें ही जैन धर्म और अग्निका लोप होजायगा । और फिर जो होगा वह उत्सप्पिणीकालके वर्णनमें बतलाया जाचुका है। इसतरह यह कल्पकाल है । यही विधि सर्वथा चालू रहेगी । म० बुद्धके कालक्रम और इसमें किंचित् सदृशता है । वाह्य रेखायें एक समान है, यद्यपि मूलमें अन्तर विशेष है । अस्तुः यह भेद तो जान लिया, परन्तु भगवान महावीरके मतानुसार लोकका स्वरूप तो अभी तक नहीं जान पाया। अतएव आइये पाठकगण, अब यहापर यह देखलें कि भगवान महावीरने लोकके विषयमें क्या कहा था ? ___भगवान महावीरने भी असंख्यात् द्वीप समुद्र बतलाये थे, परन्तु उस सबके लिये स्वर्ग-नर्क आदि उन्होंने एक ही बतलाये थे उनके अनुसार वह लोक तीन भागोमें विभाजित है और उसे तीन प्रकारकी वायुसे वेष्टित बतलाया गया है। यह तीन भाग ऊर्च, मध्य और अधोलोक कहे गये हैं। ____ अधोलोकके सर्व अन्तिम भागमें 'निगोद' है । यह वह स्थान है जिसमें निगोद जीव रहते हैं । यह निगोद जीव एकेन्द्रीनीवसे भी हीन अवस्थामें हैं और अनन्त हैं। यहां स्पर्शन इन्द्री भी पूर्ण व्यक्त नही है । जीव समुदाय रूपमें इकट्ठे एक शरीरमें रहते हैं । इनकी आयु भी अत्यल्प है। वे एक श्वासमें १८ वार जन्मते
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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