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________________ -और म० बुद्ध ] [१४९ लुप्त होजाता है और एक तरहका मक्खन-मिश्री-मिश्रित पदार्थ सिरज जाता है । इसपर भी लडाई होती है। आखिर लतादि उत्पन्न होते २ चांवल उत्पन्न होते हैं जिनको खानेसे इन लोगोके शरीर आजकलके मनुष्यों जैसे होते हैं, जिससे कषाय और विषयवासनायें आकर सताने लगती हैं। इसपर वह ब्रह्मलोग जो पवित्रतासे रहते हैं अपने उन साथियोंको निकाल बाहर कर देते हैं जो विषयवासनाके वशीभूत होकर पवित्रतासे हाथ धो बैठते हैं। यह बहिष्कृत ब्रह्मलोग अलग जाकर एकान्तमें मकान बनाकर रहने लगते हैं। यहां रहकर वे आलस्यके प्रेरे कई दिनके लिये इकट्ठे चावल ले आने लगते हैं । इसपर चावल धानरूपमें पलट जाते हैं और जहांसे एक दफे वे काटे गये वहां फिर वे नही उगने लगते हैं । इस दुर्भाग्यसे उन्होंको आपसमें खेतोंको बांट लेना पड़ता है; किन्तु कतिपय ब्रह्म अपने भागसे संतुष्ट नहीं होते हैं । सो वे दूसरोंके भागमेंसे धान चुराने लगते हैं । इसपर एक नियंत्रणकी आवश्यक्ता उत्पन्न होती है जिसके अनुसार सब ब्रह्म एकत्रित होकर अपनेमेसे एकको अपना सरदार चुन लेते हैं। यह 'सम्मत' कहलाता है । वह खेतोंपर अधिकारी होनेके कारण ही 'खत्तियो' या क्षत्रिय नामसे प्रसिद्ध होता है । उसकी संतान भी इसी नामसे विख्यात् हुई । और इस तरह राज्यवंश अथवा क्षत्रिय वर्णकी उत्पत्ति होजाती है । उन ब्रह्मोंमें कतिपय ऐसे भी होते हैं जो बदमाशोंकी बदमाशी देखकर अपनेको संयममें रखनेका अभ्यास करने लगते हैं । इस अभ्यासके कारण वे ब्राह्मण कहलाते हैं और इसप्रकार ब्राह्मण वर्णकी सृष्टि हो जाती है। उनमें ऐसे भी
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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