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________________ - - - - १४४. [ भगवान महावीरमहामेरुकी पश्चिम ओर गोल दर्पणके आकारका ७००० योजनके विस्तारका है; (४) और जम्बूद्वीप जो महामेरुकी दक्षिण ओर त्रिकोन आकारका १०००० योजनके विस्तारका है। जैन विवरण इससे नहीं मिलता है । वहां मध्यलोकमें जम्बूद्वीप आदि अनेक द्वीप समुद्र बताये हैं। इन द्वीपसमुद्रोके ठीक बीचोबीचमें जम्बूद्वीप बतलाया है जो गोल आकारका है और जिसके मध्यमें मनुष्य शरीरमें नाभिकी भांति मेरु पर्वत है । जम्बूद्वीप एक लाख योननके विस्तारका है । उत्तरकुरु और पूर्वविदेह उसमें वे क्षेत्र हैं जहां भोगभूमि है; परन्तु बौद्धोंके अपरगोदान द्वीपका पता कहीं नहीं लगता है । बौद्धोने अपने 'उत्तरकुरुदिवयिन' द्वीपका जो विवरण दिया है उससे स्पष्ट है कि वे भी वहां एक तरहकी भोगभूमि मानते हैं। उनके अनुसार वहाके निवासी चौकोल मुखके है, जो न कभी बीमार होते हैं और न कोई आकस्मिक घटना उनपर घटित होती है । स्त्री पुरुष दोनो ही सदा षोडशवर्शीय सुन्दर अवस्थाको धारण किये रहते हैं। वे कोई कार्य धन्धा भी नही करते है, क्योंकि जो कुछ वे चाहते हैं वह उनको 'कल्पवृक्षो' से मिल जाता है।' यह वृक्ष १०० योजन ऊचे है। वहां माता, पिता, भाई आदिका कोई रिश्ता नही है । स्त्रिये देवोसे भी सुन्दर हैं । वहां वर्षा नही होती जिससे घरोकी भी आवश्यक्ता नहीं है। मनुष्योकी आयु यहां एक हजार वर्षकी है। यह विवरण जैनियोंकी भोगभूमिसे बहुत मिलता जुलता है । यद्यपि वहां भोगभूमियोकी आयु बहुत ज्यादा बतलाई है। इस भेदका कारण यही है कि जैनधर्ममें सख्या परिमाण १. Ibrd P. 4. २. Iuid P. P. 14-15.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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