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________________ १४२] [भगवान महावार - प्राण भी हैं। यह प्राण संसारी आत्माके शरीर द्वारा प्रगट हुए उपयोगका एक रूप है। ये कुल दस हैं। (१) पांच इन्द्रियां (स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु, श्रोत्र); (६) मनशक्ति, (७) वचन शक्ति, (८) कायशक्ति, (९) आयु और (१०) श्वासोश्वास । इन प्राणोके अनुसार ही आत्मा कर्म संचय कर सक्ती है और कपायोंको रख सक्ती है इसीलिये आत्माओकी छे लेश्यायें ( Thought Colours) बताई है। इनसे आत्माके कषायोंकी तीव्रता ज्ञात होती है। यह मक्खेंलि गोशालके छै अभिजाति सिद्धान्तके समान नहीं है । उसके अनुसार तो मनुष्य आत्मायें ही छै प्रकारको ठहरती है, परन्तु जैनसिद्धान्तमें सब आत्मायें अपने असली रूपमें 'एक समान बताई गई हैं। म० बुद्धने भी 'व्यक्ति' के छै प्रकारके जीवन बताये हैं और यह संभवत स्वर्ग, नर्क, मनुष्य, पशुपक्षी, प्रेत और असुर रूप हैं। जल, अग्नि, वायु और पृथ्वीमें बुद्धने जीव स्वीकार नहीं किया है यद्यपि वनस्पतिमें जीव स्वीकार किया गया प्रतीत होता है। परंतु इनमेसे किसीका भी पूर्ण मार्मिक विवरण हमे बौद्ध धर्ममे सामान्यतः नही मिलता है। इतना ज्ञात है कि पुण्य पापमें कर्म नो अज्ञानताके कारण किये जाते है उनसे इन जीवनोमें व्यक्तिका सद्भाव होता है। यह जानने का प्रयत्न करने पर कि यह जीवनक्रम लोकमे किस तरह पर अवस्थित है, म० वुद्ध बतलाते है कि इस लोकमें अगणित ससार क्षेत्र है, जिनके अपने २ स्वर्ग और नर्क है। 1.हे. ए० हे० पृष्ठ ९२. २ मिलिन्द ४।३७. 3. है. ए० हे. पृष्ठ १३.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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