SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८] [ भगवान महावीर आवश्यक है, उसी तरह शेषके तत्व है । इनमें चौथा तत्व बंध हैं। यह आश्रवित कर्मको आत्मासे एक कालके लिये सम्बन्धित करानेके लिये आवश्यक ही है । इसका कार्य यही है।' इसका कार्य यही है, परन्तु इस बंधकी अवधि उससमयके कषायोंकी तीव्रतापर अवलम्बित है; जिससमय कर्माश्रव होरहा हो । इस अवधिमे संचित कर्म अपना शुभाशुभ फल देता है और पूर्ण फलको देनेपर आत्मासे अलग होजाता है। यहांतक तो कर्मोंके संचय और उनके प्रभावका दिग्दर्शन किया गया है, किन्तु पांचवें तत्वसे इस कर्म से छुटकारा पानेका भाव शुरू होता है । यह तत्व संवर है । कर्मोंसे छुटकारा पानेके लिये उस नलीका मुख बन्द करना आवश्यक है जिसमेंसे कर्माश्रव होता है। यह प्रतिरोध ही संवर हैं । मन, वचन, कायके योग और उनके आधीन इन्द्रियजनित विषयवासनाओं पर विजय प्राप्त करना मानो आगामी कर्मों के आगमनका द्वार बंद करना है । फिर इस अवस्थामें केवल यही शेष रह जाता है कि जो कर्म सत्तामें हो उनको निकाल दिया जावे। यह निकालना छट्टा तत्व निर्जरा है और इसके द्वारा कमको नियत समयसे पहिले ही झाड देना है । यह संयम और तपश्चरणके अभ्यास से होता है । अन्ततः कर्मोंसे पूर्ण छुटकारा पाना सातवां तत्व मोक्ष है । मुक्त हुई आत्मा लोककी शिखिरपर स्थित सिद्धशिलामें पहुंचकर हमेशा के लिये अपने स्वभावका भोक्ता बन जाती है। उस दशामें वह अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य और अनन्त सुखका उपभोग करती है । इसप्रकार यह प्राकृतिक सिद्ध सात तत्व है और इनमें किसी प्रकारकी कमीवेशी करनेकी १. त० सू० पृष्ठ १५७... २. त० सू० पृष्ठ १७५.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy