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________________ • -और म० बुद्ध] [१६३ बुद्धपर आरोपित नहीं किया जासक्ता, क्योकि उन्होंने पहिले ही सैद्धांतिक वातावरणमें आनेसे इन्कार कर दिया था। वे थे तत्कालीन परिस्थितिके सुधारक और सुधारक भी माध्यमिक कोटिके ! इसलिये उनका सैद्धांतिक विवेचन पूर्णताको लिये हुये न हो तो कोई आश्चर्य नहीं! वौद्धधर्मका सैद्धांतिक विकास बहुत करके म० बुद्धके उपरान्तका कार्य है। किन्तु इतनेपर भी यह स्पष्ट है कि म० बुद्धके अनुसार भी संसार एक सनातन प्रवाह है, जिसका प्रारम्भ और अन्त अनंतके गर्तमें है । तथापि वह असत्तात्मक ( Unsubstantial ) और कर्मके आश्रित हैं । कर्म स्वयं किसी मनुष्यका नैतिक कार्य नहीं बतलाया गया है, परन्तु वह एक सार्वभौमिक सिद्धान्त माना गया है। उसे किसी बाह्य हस्तक्षेपकी जरूरत नहीं है जो उसका फल प्रदान करे । कर्म स्वयं स्वाधीन है, इसलिये बुद्धके निकट भी एक जगत नियंत्रक ईश्वरकी मानताको आदर प्राप्त नहीं है। इस प्रकार सामान्यतः भगवान महावीर और म० बुद्धका कर्म सिद्धान्त विवरण भी किंचित बाह्य सादृश्यता रखता है। कर्मका स्वभाव और प्रभाव दोनों ओर एकसाही माना गया है। किन्तु यह एकता केवल शब्दोमें ही है। मूलमें दोनोंमें आकाश पातालका अन्तर हैं। भ० महावीरके अनुसार कर्म एक सूक्ष्म सत्तामय पौगलिक पदार्थ है; जो संसारी जीवके बन्धनका कारण है। म० वुद्धके निकट वह असत्तात्मक (Unsubstantial) नियम है। विद्वानोंने परि__णामतः खोन करके यह प्रगट किया है कि म० बुद्धने कर्मसिद्धांट तकी बहुतसी बातोंको जैनधर्मसे गृहण किया था। माधव, संवर
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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