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________________ - - १३२] [ भगवान महावीरहत्यायोंके अपराधीकी छुट्टी इस अवस्थामें थोड़ेसे मुक्कोंके खानेमें ही हो जाती है। इससे स्पष्ट है कि गत संस्कारों और विज्ञान (Consciousness)का दूसरे भवमे चला आना अवश्यंभावी है। ____ इस तरह जितने भी अज्ञानीव्यक्ति तृष्णाके आधीन हुये उसको तृप्त करनेकी कोशिश करते रहते है, उनके विषयमें बुद्ध कहते हैं, कि वे संसारमें फंसे रहते है, और अपने कृतकर्मोके फल अनुरूप नवीन व्यक्तित्वको जन्म देते हैं। यह कर्मशक्ति किस तरह अपना कार्य करती है, अभाग्यवश यह हमको नहीं बताया गया है। यह भी बुद्धकी 'अनिश्चित बातों मेसे एक है । म० बुद्ध कर्मकी कार्यशक्ति तो मानते है, परन्तु वह यह नहीं बतलाते कि वह किस तरह कार्य करती है। यही कारण है कि स्वयं बौद्धग्रन्थोंमें इस विषयपर पूर्वापर विरोधित मत मिलते है । जरा 'मिलिन्द-पन्ह'को ले लीजिए। एक स्थानपर इसमें केवल कर्मको ही दुःख व पीडाका कारण नहीं बतलाया है बल्कि पित-श्लेष्म आदिके आधिक्यरूप आठ कारण और बतलाये है, और कहा है कि जो कर्मको ही सब पीडाओंका मूल बतलाते है वे झूठे है। किन्तु इसी ग्रन्थमें अन्यत्र कर्मके प्रभावको ही सर्वोपरि स्वीकार किया है। कहा है कि यह कर्म ही है जो शेष सब बातोपर अधिकार जमाये हुये है। उसीकी तूती सर्वथा वोलती है। इस तरह बौद्ध धर्ममें कर्मसिद्धान्तका निरूपण भी पूर्णरूपमे नही मिलता है। इस कमताईका दोष म० १. यहा जैनधर्मके वर्म संक्रमण, अतिक्मणका दृश्य है ।२. बुद्धिस्ट फिलॉसफी पृष्ठ १०२. ३. कथ्स 'बुद्धिस्ट फिलॉसफी' पृष्ठ १०९ १. मिलिन्द-पन्ह ४ २. ५. मि. प. ४४१३,
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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