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[भगवान महावीर ___ अगाड़ी इसी कार्य-कारण-लड़ीके अनुसार कहा गया है कि पर्यायावस्था (Becoming) चालू रहती है और वस्तुतः यहां
सिवाय पर्यायान्तरित होनेके कोई व्यक्ति है ही नही।' इस पर्या• यावस्थामे पुरानी और नवीन पर्यायका सम्बन्ध चालू रखनेके लिये,
महानिदान सूत्र में, माताके गर्भमे विज्ञान (Consciousness) का उतरना बतलाया है। डॉ० कीथ इस मतको स्वीकार करते हैं
और कहते हैं कि "इस वक्तव्य-विशेषणसे कि 'विज्ञानका उतराव होता है। ( Descent of the Consciousness ) विज्ञानका पुरानी पर्यायसे नवीनमें जाना बिल्कुल स्पष्ट है। और यह सभव है कि यह विज्ञान किसी प्रकारके शरीर सहित आता हो । म० बुद्ध विज्ञानके चालू रहनेसे विल्कुल सहमत हैं । " इसप्रकार यद्यपि म० बुद्धने एक नित्य सत्तात्मक व्यक्ति का अस्तित्व स्वीकार किये विना ही अपना सिद्धान्त निरूपित करना चाहा और संज्ञा (Consciousness) की उत्पत्ति अपने आप पांच स्कन्धोम होती स्वीकार की, जिस तरह साख्यदर्शन बतलाता है, परन्तु अंततः उनको पर्याय-प्रवाहमें संज्ञा-विज्ञान-Conserousness का चालू रहना मानना ही पड़ा । इस तरह इस निरूपणकी कोजाई साफ जाहिर है । भला विना किसी सत्तात्मक नित्य नीवके सांसारिक पर्यायोका किला कसे वाधा जासक्ता है ? किन्तु इस निरूपणमैं भी जैन सिद्धातकी झिलमिली अलक नजर पड़ रही है । जैनियोंक अनुसार इच्छा ही कर्मवधकी कारण है, जिसका मूल श्रोत कर्मन- १ बुद्धिज्म-इट्स हिस्टरी एन्ड स्टिरेचर पृष्ठ १२४. २ दीपनि। काय २१६३.३, बुद्रिस्ट फिलॉसफी पृष्ट ८०.