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________________ १२८] [ भगवान महावीरइस विवरणसे हमें म० बुद्धका संसार प्रवाह जाहिरा कार्यकारणके सिद्धान्त पर अवलंबित नजर आता है। इसी कारणउसके अनुसार भी संसारमें सनातन और अविच्छन्न प्रवाह मिलते हैं। इस अवस्थामें यह जैनसिद्धांतमें स्वीकृत जन्म-मरण सिद्धान्त (Transmigration Theory) का रूपान्तर ही है । इनमें जो भेद है वह यही है कि बौद्धोंके अनुसार प्रारंभमें सर्व कुछ (Form and mode) अज्ञान ही था। जैनसिद्धान्तमें ससारपरिभ्रमण सिद्धान्तका प्रारंभ माना ही नहीं गया है । वह वहां अनादिनिधन है । इसतरह बुद्धका संसारप्रवाह मूलसे ही जैनसिद्धान्तके विरुद्ध है म. वुद्धके उक्त विवरणमें यदि हम यह जाननेकी कोशिश करें कि जन्म किसका होता है, तो हमें निराशा ही हाथ आयगी; क्योकि आत्माका अस्तित्व म० बुद्धने स्वीकार ही नही किया था। यद्यपि इस विषयमे लोगोंको अपनी मर्जी के मुताबिक श्रद्धान बांधनेकी भी छुट्टी म बुद्धने देदीथी, जिससे बौद्ध शास्त्रों में भी आत्मबादकी झलक कही २ दिखाई पड जाती है, परन्तु उन्होने स्वयं अनात्मवादको ही प्रधानता दी थी। अभिधर्मका निरूपण करते हुये बुद्धने यही कहा था कि 'न कोई आत्मा है, न पुद्गल है, न सत्व है और न जीव है। यहा केवल ब्राह्मण सिद्धान्तमें माने हुये आत्माका ही खण्डन नहीं है, बल्कि उस सिद्धांतका भी जो शरीरसे भिन्न एक जीवितपदार्थमानकर संसारपरिभ्रमणकी घोषणा करता है। उनके अनुसार मनुप्य पांच स्कन्धोंका समुदाय है, अर्थात रूप १ धम्मपद (S. B. E) और थेरथेरी गांधा देखो.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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