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-और म०.बुद्ध
[१२१ लिये आगामी के लिये संखार बांधना मुश्किल है । तिसपर यह बात मी ध्यानमें रखनेकी है कि बुद्धने जिन पांच स्खण्डों या स्कंधोका समुदाय व्यक्ति बतलाया है उनमें एक खण्ड संखार भी है। इस अवस्थामे संखारका भाव अलग निदान बांधनेका नही हो सक्ता । इसीलिये डॉ. कीथसाहब भावो (Dispositions) को ही संखार बतलाते हैं: जो सांख्यदर्शनके 'सस्कार के समान ही है, जिनका व्यवहार वहां पर पहिले विचारों और कार्योद्वारा छोड़े गये संस्कारों (Impressions) के प्रभाव फलके रूपमें हुआ हैं ।' म० बुद्धके बताये हुये जाहिरा कार्य-कारण लड़ीमें इन संखारोकी मुख्यता इसीरूपमें मौजूद है । इन्ही संखारोकी प्रधानताको लक्ष्य करते हुये म० बुद्धने अपनी कार्य-कारण लडीका निरूपण इस तरह किया है:
"अज्ञानसे संस्कारकी उत्पत्ति होती है। इससे विज्ञान (Apprehension) की; जिससे नाम और भौतिक देह उत्पन्न होती फिर नाम और भौतिक देहसे षट्-क्षेत्रकी सृष्टि होती है, जो इन्द्रियों और विषयोको जन्म देती है । इन इन्द्रियो और उनके विषयोंके आपसी सघर्पसे वेदना उत्पन्न होती है । वेदनासे तृष्णा होती है, जिससे उपादान पैदा होता है, जो भवका कारण है। भवसे जन्म होता है। जन्मसे बुढ़ापा, मरण, दुख, अनुसोचन + (Rmo 1st) यातना, उद्वेग और नैरास्य उत्पन्न होते हैं । इस तरह दुखका साम्राज्य बढ़ता है।"
१ इय विवरणके लिए डॉ. कीथसा की "बुद्धिस्ट फिलासफो* नाम पुन: (पृष्ठ ५०-५1) देखना चाहिए ।