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-और म० वुद्ध
[ १२१ उक्त चार पदार्थोके अतिरिक्त बुद्धने उनके साथ निर्वाण और विज्ञान (Conception of Consciousness) की गणना करके अपना सैद्धान्तिक मत छै तत्वोपर प्रारम्भ किया था। विज्ञानमें दुःख और सुखको अनुभव करनेका भाव गर्भित था। यह सब पदार्थ नित्य ही थे और इनहीके पारस्परिक सम्बन्धसे संसारका अस्तित्व बतलाया था।
इस सिद्धान्तविवेचनमें बुद्धसे प्राचीन मतोंका प्रभाव स्पष्ट प्रतीत होता है । इनमें मुख्यतः ब्राह्मण और जैनधर्मका प्रभाव दृष्टव्य है। जो चार पदार्थ म बुद्धने स्वीकार किये हैं वह ब्राह्मण धर्ममें पहिलेसे ही स्वीकृत थे इसलिए वह उन्होंने वहांसे लिये थे। परन्तु उन्होंने उनको जिस ढंगसे प्रतिपादित किया है वह जैनधर्मकी लोकमान्यतासे मिलता जुलता है । जैनियोंके अनुसार भी छै द्रव्योकर युक्त यह लोक है, परन्तु यह छै द्रव्य म० बुद्ध द्वारा स्वीकृत छ तत्वोंसे विल्कुल भिन्न थे जैसे हम अगाडी देखेंगे। इसके अतिरिक्त वुद्धने जो धमकी व्याख्या की थी वह भी सामान्यतया जैन व्याख्यासे मिलती जुलती थी, जैसे कि हम देख चुके हैं । फिर बुद्धने जो उसके दो भेद आभ्यन्तिरिक (अज्झत्तिक)
और वाह्य (वाहिर) किये थे. वह भी सामान्यतः जैन सिद्धान्तके निश्चय और व्यवहार धर्मके समान हैं। किन्तु फर्क यहां भी विशेष मौजूद है, क्योंकि बौद्धोंके निकट इनका सम्बन्ध सिर्फ बाह्य जगत और मानसिक सम्बन्धोंसे है, और जैन सिद्धान्तमें इनके अलावा
१. पूर्व पृष्ठ ९४-९५. २. पूर्व पृष्ठ ४२. ३. कीथम बुद्धिस्ट फिलासफी पृष्ठ ७४. ४. तत्वार्थसत्र (S.B.J. II) पृष्ठ १५.
बुद्धिस्ट फिलासफी पृष्ठ ७४.