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________________ १२० ] [ भगवान महावीर और न ऐसे ही पदार्थ हैं जिनका सर्वथा नाश होजाता है, प्रत्युत समस्त लोक एक घटनाक्रम है, कोई भी वस्तु किसी समय में यथार्थ नहीं हो सक्ती ।' इसलिये ऐसा कोई पदार्थ नहीं है जो आत्मा हो । शरीर (रूप) आत्मासे उसी तरह रहित है जिस तरह गङ्गा नदीमें उतराता हुआ फेनका बबूला है।' ( सयुत निकाय ३ – १४० ). परन्तु विस्मय है कि बुद्धने एकान्तवाद - अनित्यताका भी निरूपण पूरी तरह नहीं किया है। तो भी यह बतलाया गया है कि चार पदार्थ हैं: - ( १ ) पृथ्वी (२) अग्नि (३) वायु और (४) जल | आकाश भी कभी २ गिन लिया गया है। किन्तु म ० बुद्धने उनको किस ढंगसे स्वीकार किया था यह ज्ञात नहीं है । केवल यह प्रकट है कि "प्रत्येक पौलिक पदार्थ एक मिश्रण (संखार Compound) है, जो शरीरकी तरह किसी समयतक बना रहेगा, परन्तु अन्तमें नष्ट हो जावेगा । पदार्थ अनित्य है । प्रारंभिक बौद्ध धर्ममें वे क्षणिक स्वीकृत नहीं है । यह उपरान्तका सुधार है । "" विशेषकर बुद्धके निकट लोक केवल अनुभवका एक पदार्थ था । उन्होंने इसकी नित्यता और अनन्तता के सम्बन्धमें कुछ कहने से साफ इन्कार कर दिया था, किंतु इननेपर भी यह स्पष्ट है कि म० बुद्धने जो उक्त चार पदार्थोंको स्वीकार किया था सो उसमें उन्होंने यथार्थ बाद (Realistic View ) को अन्ततः गौणरूपमें स्वीकार ही किया था । इससे उनके विवेचन की अनियमितता भी प्रकट है। १. कीन बुट फिलॉसफो पृष्ठ ९४ और दी साम्स ऑफ दी चरन पृष्ठ ६८. २० की ० दु० फि० पृष्ठ १३ और मिलिन्द - पन्ह २१/१ (S.BE ) पृष्s ४०. ३. की० ० कि० पृष्ठ ९२. ४. पूर्ववत ५. पूर्ववत् ६. पूर्व पृष्ठ ८५. •
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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