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-और- म० बुद्ध
[११९ सत्यको जान लिया है मरणोपरान्त जीवित रहता है ? (८) अथवा वह जीवित नहीं रहता है ? (९) अथवा वह जीवित भी रहता है और नही भी रहता है १ (१०) अथवा वह न जीवित रहता है और न वह नही जीवित रहता है ? और इन सबका उत्तर म० Qखने वही दिया जो उन्होने प्रथम प्रश्नके उत्तरमें दिया था। इस परिस्थितिमें यह स्पष्ट अनुभवगम्य है कि म० बुद्धने सैद्धांतिक विवेचनकी प्रारंभिक वातोका स्थापन प्रकृतिके नियमोके रूपमें पूर्ण रीतिसे नहीं किया था जैसाकि बतलाया जाता है। भगवान महावीरके विषयमें हम अगाडी देखेंगे। ___अतएव जब कभी म० बुद्धके निकट ऐसी अवस्था उपस्थित हुई तो उनने उसका समाधान कुछ भी नहीं किया। बौद्धदर्शनके विद्वान् डा० कीथ बुद्धकी इस परिस्थितिको बिल्कुल उचित वतलाते हैं। वह कहते है कि बुद्धने पहिले ही कह दिया था कि वह अपने शिष्योंको इन विषयोंमें शिक्षा नहीं देंगे । म० बुद्ध एक ऐसे हकीम हैं जो ऐसी शिक्षा देते हैं जिससे शिष्यका वर्तमान जीवन सुखमय बने, किन्तु वास्तवमें इन बातोको अस्पष्ट छोड़ देनेसे बुद्धने लोगोंको अपने मनोनुकूल निर्णयको माननेकी स्वतंत्रता दी है और यह क्रिया एक 'माध्यमिक 'के सर्वथा योग्य थी।
ऐसा प्रतिभाषित होता है कि बुद्धने वस्तुओंके स्वभाव पर केवल उनकी सासारिक अवस्थाके अनुसार दृष्टिपात किया था। - उन्होंने स्पष्ट कहा था कि 'लोकमें कोई भी नित्य पदार्थ नहीं है
१ डोयलोग्स आफ दी बुद्ध (S. B. B. Vol. II.) पृ०२५४. २ कीथम 'बुद्धिस्ट फिलासफी पृ० ६२.