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________________ - ११८] [ भगवान महावीरबतलाया था। कहा था "वस्तुस्वभाव ही धर्म है।" और इसतरह जाहिरा यहांपर दोनो मान्यताओंमें साम्यता नजर पड़ती है; परन्तु यथार्थमें उनका भाव एक दूसरेके बिल्कुल विपरीत है।म बुद्धके हाथोसे इस सिद्धान्तको वह न्याय नहीं मिला जो उसे भगवान महावीरके निकट प्राप्त था । इसी कारण चौद्धदर्शनका अध्ययन करके सत्यके नाते विद्वानोको यही कहना पड़ा है कि बुद्धके सैद्धान्तिक विवेचनमें व्यवस्था और पूर्णता दोनोकी कमी है।' बुद्धके निकट सैद्धातिक विवेचन ससारदुःखका कारण था। ऐसी दशामें इन प्रश्नोंका वैज्ञानिक उत्तर म० बुद्धसे पाना नितान्त असम्भव है। इन प्रश्नोको उनने 'अनिश्चित वातें ठहराया था। जब उनसे पुछा गया कि "क्या लोक नित्य है ? क्या यही सत्य है और सब मत मिथ्या है ?" उन्होंने स्पष्ट रीतिसे उत्तर दिया कि "हे पोत्थपाद, यह वह विषय है जिसपर मैंने अपना मत प्रकट नहीं किया है।" तब फिर इसी तरह पोत्थपादने उनसे यह प्रश्न किये । (२) क्या लोक नित्य नही है ? (३) क्या लोक नियमित है ? (४) क्या लोक अनन्त है ? (५) क्या आत्मा वही है जो शरीर है ? (६) क्या शरीर भिन्न है और आत्मा भिन्न है ? (७) क्या वह जिसने . १ 'धम्मो पत्थुसहावो समादिभावो य दसविहो धम्मो । रयणतयं च धम्मो, जीवाम रक्खणं धम्मो ॥ ४७६ ॥ , . स्वामि कार्तिक्यानुपेक्षा । २ की 'बुद्धिस्ट फिलोसफी-भूमिका. २ बुद्धिज्मः इट्स हिस्टरी एण्ड लिटरेचर पृ० ३९.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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