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________________ १२२] [ भगवान महावीरपदार्थके वास्तविक स्वरूपसे भी यह सम्बन्धित है। इससे यह साफ प्रकट है कि म० बुद्धने केवल जैनियोके व्यवहार धर्मका किंचित आश्रय लेकर अपने सिद्धान्तोंका निरूपण किया था इसीलिये जैनशास्त्रोमे म० बुद्धके धर्मकी गणना एकान्तवादमें की गई है। श्री गोम्मटसारजीका निम्न श्लोक यही प्रकट करता है: 'एयंत बुद्धदरसी विवरीओ वंभ तावसो विणओ। इंदो वि य संसइओ मक्कडिओ चेव अण्णाणी ॥' 'इसमें बौद्धको एकान्तवादी, ब्रह्म या ब्राह्मणोको विपरीतमत, तापसोको वैनयिक, इन्द्रको साशयिक, और मखलि या मस्करीको अज्ञानी बतलाया है। किन्तु श्वेताम्बर ग्रन्थोमें बौद्ध धर्मको 'अक्रियावादी' लिखा है, जो स्वयं बौद्धोंके शास्त्रोंके उल्लेखोसे प्रमाणित है। यहां पर श्वेताम्बराचार्य वौद्धोके अनात्मवादको लक्ष्य करके ऐसा लिखते हैं, जब कि दिगम्बराचार्य उनके सैद्धान्तिक विवेचनको पूर्णतः लक्ष्य करके उसे एकान्तवादी ठहराते हैं। अक्रियाबाद एकान्तमतका एक भेद है । स्वय दिगम्बर जैनोंकी 'तत्वार्थ राजवार्तिक' ( ११० ) में बौद्ध धर्मके मुख्य प्रणेता मौद्गलायनका उल्लेख अक्रियावादियोमें किया गया है । अस्तु । ___आइए पाठक अब जरा भगवान महावीरके धर्म पर भी एक दृष्टि डाललें । उन्होंने जिस प्रकार धर्मकी व्याख्याकी थी, उसीके अनुसार समस्त सत्तावान पदार्थोके विषयमें सनातन सत्यका निरू, पण किया। उन्होंने कहा कि यह लोक प्रारंभ और अन्त रहित १. जैनसूत्र ( S. B. E. ) भाग २ भूमिका.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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