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________________ ११६] [ भगवान महाबीरवहां (भाग २ ४० ३५०) पर लिखा है कि 'तीत्युगलियपयन' और 'तीर्थोद्धार प्रकीर्ण' नामक प्राचीन जैनशास्त्रके मतसे जिस रातको तीर्थंकर महावीरस्वामीने सिद्धि पायी, उसी रातको पालक राना अवन्तीके सिंहासनपर बैठे थे । पालकवंश ६०, उसके बाद नन्दवंश १५५, मोर्यवंश १०८, पुष्पमित्र ३०, बलमित्र एवं भानुमित्र ६०, नरसेन बबरवाहन ४०, गर्दभिल्ल १३ और शकरानने ४ वर्ष राजत्व किया । महावीरस्वामीके परिनिर्वाणसे शकराजके अभ्युदयकाल पर्यन्त ४७० वर्ष बीते थे । इधर सरस्वती गच्छकी पट्टावलीसे देखते, कि विक्रमने उक्त शकराजको हराया सही, किन्तु सोलह वर्ष तक राज्याभिषिक्त न हुए । उक्त सरस्वती ग्रच्छकी गाथामें स्पष्ट लिखा है-“वीरात् ४९२, विक्रमजन्मान्त वर्ष २२, राज्यान्त वर्ष ४" अर्थात् शकराजके ४७० और विक्रमाभिषेकाव्दके ४८८ अर्थात् सन् ई० से ५४५-४. वर्ष पहिले महावीरस्वामीको मोक्ष मिला था " अतएव यही समय निर्वाणकालका ठीक जंचता है। इस प्रकार म० बुद्ध और भगवान महावीरकी जीवनघटनाओंका तुलनात्मक रीतिसे अध्ययन करनेपर हमने उनकी पारस्परिक विभिन्नताको विल्कुल स्पष्ट कर दिया है और अब हम सुगमतासे उनके भिन्न व्यक्तित्व एवं समकालीन संवधोंके विषयमें एक निश्चित मत स्थिर कर सक्ते हैं। इस विवेचनके पाठसे पाठकोको उस मिथ्या मानताकी असारता भी ज्ञात हो जायगी जो इस उन्नतशील जमानेमें भी कहीं कही घर किये हुये है कि जैनधर्मकी उत्पत्ति बौद्धधर्मसे हुई थी अथवा म० बुद्ध और भगवान महावीर एक व्यक्ति थे।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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