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[ भगवान महावोर
हर्ष तब ही होता है जब कोई बाधक वस्तु उद्देश्यमार्गमे से दूर हुई हो । इसलिए इससे भी साफ प्रकट है कि भगवान महावीर के धर्मप्रचारके कारण बुद्धदेवको अवश्य ही अपने मध्यमार्गके प्रचार में शिथिलता सहन करनी पडी थी और वह शिथिलता भगवान महावीरके निर्वाणासीन होते ही दूर होगई, जैसे कि हम पहिले देख चुके हैं । इस विषयमे एक प्राच्यविद्याविशारदका भी वही कथन है कि भगवान महावीरके निर्वाणलाभसे म० बुद्ध और उनके मुख्य शिप्य सारीपुत्तने अपने धर्मका प्रचार करनेका विशेष लाभ उठाया था।
अतएव यह स्पष्ट है कि म० बुद्धके १० से ७० वर्षके जीवन अतरालके घटनाक्रमका प्राय न मिलना भगवान महावीरके दिव्योपदेशके कारण था और इस दशामें डॉ० हार्नले साहेबकी उपरोल्लिखित गणना विशेष प्रमाणिक प्रतिभाषित होती है, जिसके कारण म ० बुद्ध और भगवान महावीरके पारस्परिक जीवन सबन्ध वैसे ही सिद्ध होते है जैसे कि हम ऊपर डा० हार्नलेसाहिबकी गणनाके अनुसार देखचुके है, किन्तु बौद्धशास्त्रों में एक स्थान पर म० बुद्धको उस समयके प्रख्यात मतप्रवर्तकों में सर्वलघु लिखा है, परन्तु उन्हीके एक अन्य शास्त्रमें म० बुद्ध इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर देते नहीं मिलते हैं। वह वहां प्रश्नको टालनेका ही 'प्रयत्न करते हैं । इससे यही विशेष उपयुक्त प्रतीत होता हैं कि आयुमें भगवान महावीरसे तो कमसे कम म० बुद्ध अवश्य ही बड़े थे, परन्तु एक मत प्रवर्तककी भांति वे जरूर ही सर्वलघु थे; क्योंकि
१ क्षत्रिय लेन्स इन ' बुद्धिस्ट - इन्डिया पृष्ठ १७६. २. हिस्टॉरिकल ग्ली निन्ग्स पृष्ठ २४ 3 सुत्तनिपात ( S. B. E. Vol. X. ) पृष्ठ ८७.