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-और म० बुद्ध ]
[१०९ वे सर्वज्ञ होते है, जैसे कि हम भगवान महावीरके विषयमें देख चुके है। तथापि सर्वज्ञ तीर्थकर भगवानकी पुण्य प्रतिके प्रभावसे ४०० कोसतक चहुओर दुर्भिक्ष आदि दूर हो जाते हैं
और उनके समवशरणमें मानस्तंभके दर्शन करते ही लोगोंका मिथ्या ज्ञान और मान काफूर होनाता है। इस दशामे अवश्य ही भगवान महावीरका दिव्यप्रभाव सर्वत्र अपना कार्य कर गया होगा, जैसा कि वौद्धग्रन्थोसे झलकता है, अतएव म० बुद्धके जीवनपर भगवान महावीरका प्रभाव पडा व्यक्त करना बिल्कुल युक्तियुक्त मालूम होता है । यही कारण प्रतीत होता है कि म० बुद्ध ७२ वर्षकी अवस्थामे सामान्यरूपसे राजगृहमें आकर पूछकर एक कुम्हारके यहां रात्रि विताते है।
इसके साथ ही भगवान महावीरके निर्वाणलाभके समाचार बौद्धसंघके लिये एक हर्षप्रद समाचार थे, यह बौद्धग्रन्थके निम्न उद्धरणसे प्रमाणित है । वहां लिखा है कि
"पावाके चन्ड नामक व्यक्तिने मल्लदेशके सामगांममें स्थित आनन्दको महान् तीर्थंकर महावीरके शरीरान्त होनेकी खवर दी थी । आनंदने इस घटनाके महत्वको झट अनुभव करलिया और कहा 'मित्र चन्ड ' यह समाचार तथागतके समक्ष लानेके योग्य हैं । अस्तु, हमे उनके पास चलकर यह खबर देना चाहिये । वे बुद्धके पास दौड़े गए, जिन्होने एक दीर्घ उपदेश दिया ।"२ • इस वर्णनके शब्दोंमें स्पष्टतः एक हर्षमाव झलकरहा है और
१. के. जे. सॉन्डर्ड " गौतम बुद्ध" पृष्ठ ७५. २. सादिक मुतन्त इन दी डॉयोलॉग्स ऑफ बुद्ध भाग 3 पृष्ठ ११२.