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[ भगवान महावीरघटनेका मालूम पड़ता है । हम पूर्व परिच्छेदमें देख चुके है कि जब म बुद्ध अन्धकविन्दमें थे तब उनके साथ १२५० भिक्षु थे, परन्तु बौद्ध सघ विच्छेद अवसरके लगभग ही जब वे आपनसे कुसीनाराको गये थे तब उनके साथ सिर्फ ५० भिक्षु रह गये थे । इससे यह स्पष्ट है कि इस समय भगवान महावीरके धर्मकी मान्यता जनतामे विशेष हो गई थी, जिसका प्रभाव म० बुद्ध और उनके सघपर भी पड़ा था ।
वास्तवमें जैन तीर्थङ्करके जीवन में केवलज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त करके धर्मोपदेश देनेका ही एक अवसर ऐसा है जो अनुपम
और अद्भुत प्रभावशाली है । इस बातकी पुष्टि प्राचीनसे प्राचीन उपलब्ध जैनसाहित्यसे होती है । अतएव उक्त प्रक्रार नो हम भगवान महावीरके इस दिव्य अवसरका दिव्य प्रभाव म० बुद्ध और उनके सघ परं पडा देखते है सो उसमें कुछ भी अत्युक्ति नही है । तीर्थकर भगवानका विहार समवशरण सहित और उनका उपदेश वैज्ञानिक ढंगपर होता है, क्योकि
१ बौद्ध प्रन्थ "चुश्वग्ग" (VII 3,14,में यह इस प्रकार स्वीकार किया गया है। __ " The people bolneve in 1ough neasures." अर्थात् -साधारण जनता कठोर नियमों में विश्वास रखती है और यह विदित ही है कि जैनियोंने बौद्धोपर उनके शिथिल साधु जीवनके वारण कटाक्ष किये थे, अतएव यहागर परोक्ष रीतिसे भगवान महावीरके सिद्धान्तोंका प्रभाव स्वीकार किया गया है। इसी बौद्ध प्रथमें अगाड़ी यह भी कहा गया है कि लोग म.बुद्धर आशायसो जीवन व्यतीत करनेका लाञ्छन लगाने लगे थे।' .( VIII 3 16 ) इसे स्पष्ट है कि इस समय अवश्य ही भगवान महावीरका दिव्योपदेश जनताके हृदयमें घर कर गया था।