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________________ -और म० वुद्ध] [१०७ खडा हुआ था। अब यह स्पष्ट ही है कि उस समय सिवाय भगवान महावीरके अन्य कोई प्रख्यात् मतप्रवर्तक ऐसा नहीं था जिसने अहिमा धर्मके महत्वको पूर्ण प्रगट किया हो और मांस खानेको पापक्रिया बताई हो। बौद्धोंके मांसभक्षण और साधु अवस्थामें भी शिथिलता रखनेके लिये जैन शास्त्रोमें उनपर कटाक्ष किये गये है । तथापि बौद्ध संघके इस विच्छेदके कितने ही वो पहिलेसे भगवान महावीर अहिसा और तपस्याका उपदेश देही रहे थे । इस अवस्थामें यह स्पष्ट है कि बौद्ध सघमे यह विच्छेद भगवान महावीरके दिव्योपदेशके कारण ही खडा हुआ था। इसके साथ ही बौद्धोंके 'महावग्ग' से विदित होता है कि इसी समय म° बुद्धके पास एक बौद्ध भिक्षु नग्न होकर आया था और नग्नावस्थाकी विशेष प्रशंसा करके बौद्ध साधुओंको उसे धारण करनेकी आज्ञा देनेकी उनसे प्रार्थना करने लगा था। यह भी हमारी व्याख्याका समर्थन करता है, क्योंकि उस समय म० महावीरके दिव्योपदेशसे दिगंवरता (नग्नत्व) का प्रभाव विशेष बढा था और यही कारण म० बुद्धके साथ भिक्षुओंकी सख्याके १. उस समय शेषमें ब्राह्मण, आजीविक, अचेलक आदि सप्रदाय थे। सो इनमें किसीको माससे परहेज नहीं था। ब्राह्मण लोग खुले रूपमें मासा. भिषिक्त क्रियाको मान दे रहे थे। आजीविक भी मास खाना बुरा नहीं समझते थे यह वौन्त्रों और जैनोंके शास्त्रोंसे प्रकट है । अचेलक-मत-प्रर्वतक • पुन्य-पाप कुछ मानते ही नहीं थे, सो मास खाना उनके निकट भी दुक्रिया नहीं होसक्ती । इस तरह उस समय भगवान महावीरने हो इसको दुनिया प्रगट किया था। २. जैन सत्र (S. BE.) भाग २ पृष्ठ ४४. 3. महावग्ग (S. B. E) १२८ पृष्ठ २४५
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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