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________________ १०६ ] [ भगवान महावीर - राजधर्म, जो पहिले जैनधर्म था, अवश्य ही बौद्धधर्म हो गया । और यह भगवान महावीरके शासनकी प्रभावनामे एक खासा धक्का था । फिर लगभग इस समयके कुछ बाद ही भगवान महावीरका निर्वाण हुआ था यह हमारे ऊपरके कथनसे प्रगट है। इसके साथ ही कुछ समयके उपरान्त आजीवकोंके सरक्षक राजा पद्मद्वारा जैनियोका सताया जाना, अवश्य ही ऐसे कारण हैं, जो हमें इस बात को माननेके लिये वाध्य करते है कि वीरशासनका प्रभाव भगवान महावीरके उपरान्त अवश्य ही किचित फीका पड गया था। और इस तरहपर बौद्धाचार्यका कथन भी ठीक बैठ जाता है । अतएव जैन और बौद्धाचार्योंके उपरोल्लिखित मत हमारी इस मान्यतामें बाधक नहीं है कि भगवान महावीरके दिव्योपदेशके कारण म० बुद्धका प्रभाव बहुत कुछ कम होगया था कि जिससे उनके जीवन के उस अन्तराल - कालका प्रायः पूरा पता नही चलता ! उधर भगवान महावीरके दिव्य प्रभावको बौद्धाचार्य स्वीकार करते ही है । अस्तु, 'भगवान महावीरके धर्मोपदेशका विशेष प्रभाव म० बुद्धके जीवनमें आडा आया था, इसका समर्थन स्वय वौद्ध ग्रन्थोंसे भी होता है । देवदत्तद्वारा जो विच्छेद बौद्ध संघ में भगवान महावीरके निचार्णकालके ढोतीन वर्ष पहिले ही खडा हुआ था, वह भी हमारी व्याख्याकी पुष्टि करता है । देवदत्तने म० बुद्धसे भिक्षुओको दैनिक क्रियाओको अधिक सयममय बनानेको, एवं मासभोजनकी मनाई करनेको कहा था। इस ही पर बौद्ध सघमे विच्छेद १ आजीविक्स भाग 1 पृष्ठ ५८.२ सान्डर्स 'गौतमबुद्ध पृष्ठ ७२-७३० १
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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