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- और म० बुद्ध ]
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आसपासके प्रसिद्ध राजा लोग भी पावापुर में पहुंचे थे और वहा - पर दीपोत्सव मनाया था । ' कल्पसूत्र' में इनका उल्लेख इस प्रकार किया गया है:
"उस पवित्र दिवस जब पूज्यनीय श्रमण महावीर सर्व सांसारिक दुःखोसे मुक्त हो गये तो काशी और कौशल के १८ राजाओने, ९ मल्ल राजाओंने और ९ लिच्छवि राजाओंने दीपोत्सव मनाया था । यह प्रोषधका दिन था और उन्होंने कहा - 'ज्ञानमय प्रकाश तो लुप्त हो चुका है, आओ भौतिक प्रकाशसे जगतको दैदीप्यमान चनायें ।"
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मानो उस समय आजकल के भौतिकवादके प्रकाशकी ही भविष्यवाणी उन राजाओने की थी । इस प्रकार उस दिव्य अवसरके अनुरूप आजतके यह दीपोत्सवका त्योहार चला आरहा है।
भगवान महावीरके परमश्रेष्ठ लाभकी पुण्य स्मृति और पवित्रता इस त्योहारमें गर्भित है । इस तरह भगवान महावीर और म० बुद्धके अन्तिम जीवनका वर्णन है । भगवान महावीर के दर्शन साक्षात् परमात्मारूप में होते है । वस्तुतः उनका यह जीवन अनुपम था । उनके जीवनसे म० बुद्धके जीवनकी तुलना करना एक निष्फल क्रिया हैं, परन्तु जब संसार दोनों व्यक्तियोंको समानता देता है तो तुलनात्मक अध्ययन करना आवश्यक ही था ।
१ जैनसूत्र (S. B. E. भाग १ पृष्ठ २६६.
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