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- और म० युद्ध ]
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और दृष्टिचम्पामें, बारह वैशाली और वाणिज्यग्राममें, चौदह राजगृह और नालन्दमें, छै मिथिलामें, दो भद्रिका में, एक आलभिकामें, एक पनितभूमिमें, एक श्रावस्तीमें, एक पावामें राजा हस्तिपालकी कचहरी में व्यतीत किये थे । "" और दिगम्बरी व शास्त्र इसप्रकार चतलाते हैं कि " जिसप्रकार भव्यवत्सल भगवान ऋषभदेवने पहिले अनेक देशों में विहार कर उन्हें धर्मात्मा बनाया था उसी प्रकार भगवान महावीर ने भी मध्यके ( काशी, कौशल, कौशल्य, कुसध्य, अश्वष्ट, त्रिगर्तपचाल, भद्रकार, पाटचार, मौक, मत्स्य, कनीय, सूरसेन एव वृकार्थक ), समुद्रतटके (कलिंग, कुरुजागल, कैकेय, आत्रेय, काबोज, वारुहीक, यवनश्रुति, सिंधु, गांधार, सौवीर, सूर, भीरु, दशेरुक, वाडवान, भरद्वान और क्वाथतोय ! और उत्तर दिशा के ( तार्ण, कार्ण, प्रच्छल, आदि ) देशोमें विहार कर उन्हें धर्मकी ओर ऋजु किया था ! महावीरपुराण के अनुसार विदेहमे ( वज्जियनराजसनो ) राजा चेटकने भगवान के चरणोका आश्रय लिया था | अगदेशके शासक कुणिकने भी भगवानकी विनय की थी और वह कौशाम्बी तक भगवान के साथर गया था । चौशाम्बी मे वहाके नृपति शतानीकने भी भगवानकी उपासना की थी और वह अन्तमें भगवान के संघ में सम्मिति होगया था । मगधेश श्रेणिक भगवानके अनन्य भक्त थे और इन्हींकी राजधानी राजगृह में भगवानने अधिक समय व्यतीत किया था । राजपुरके सुरमलय उद्यानमें जिससमय भगवान विराजमान थे, उससमय
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१. जैनमुत्र ( S. B. E) भाग १ पृष्ठ २६४ २. हरिवशपुराग ( कलकत्ता संस्करण ) पृष्ठ १८