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[भगवान महावोर___ इस हीके अनुरूपमें म० बुद्धका जीव उस रात्रिको इस नश्वर शरीरको त्याग गया। उनके अनुयायियोंने उनके शरीरकी अन्त्येष्ठ क्रिया की । उपरान्त चौद्धशास्त्र कहते है कि लिच्छवि, मल्ल, कोल्यि, शाक्य आदि क्षत्रिय राजाओने उनके शरीरकी भस्मको मंगवाकर, उसकी स्मृतिमें स्तूप बनवाये थे। इस तरह म० बुद्धका धर्मप्रचार और अन्तिम समय पूर्ण हुआ था।
__ भगवान महावीरने भी अपने समवशरणकी विमृति सहित सर्वत्र विहार किया था। दिगम्बर और श्वेताम्बर शास्त्रोंमें इसमें भी अन्तर अवश्य है, परन्तु वह कुछ विशेष महत्व नहीं रखता । श्वेताम्बर शास्त्र उसका उल्लेख वर्षाऋतु व्यतीत करनेके रूपमें करते है । दिगम्बर कहते है कि तीर्थकरावस्था, वर्षाऋतु व्यतीत करनेकी आवश्यक्ता नहीं, क्योकि तीर्थकर भगवानका शरीर इतना विशुद्ध हो जाता है कि उसके द्वारा किसी प्रकारकी हिंसा होना विल्कुल असंभव है। अतएव श्वे० के अनुसार " भगवान महावीरने प्रथम चातुर्मास अस्थिकग्राममें, फिर तीन चातुर्मास चम्पा Kusipari, and inform the Nollas of Kusin,rå, srying, 'This day.O Vasett has, in the last ratch of the night, the final passing away of the Tathngata will take place. B, fivourable herein, O Vasetthas, bo favourabilt, Give no ojcasion to 2cproach yourselves hereafter, saying, In our own village did the death of our Tathagata took place, and we took pot the opportunity of visiting the Tathagats in his last hours."
-Mahapariniblana Sutta. V. 45.
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