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________________ - और म० बुद्ध [ १३ चन्ड लुहारके यहां उन्होने सुअर के मांस के सोरदेका अन्तिम भोजन किया था । अन्तत कुशीनारामें उन्होने शिष्यो था और आनन्दसे कहा था कि.. - उपदेश दिया "" अतएव हे आनन्द ! तुम अपने आप अपने तई प्रकाश रूप बनो । अपने अपनी ही अपनी शरण समझो । किसी ब'ह्य शरणका आसरा न ता । सत्यको प्रकाशरूप जानकर उसको ही अच्छी तरह ग्रहण करो। उसी सत्यको त्राणदाता जानो । अपने आपके सिवा किसी अन्यमे शरणकी लालमा मत रक्खो । "* इसी अवसर पर अनन्दने किसी प्रख्यात् नगर चम्पा आदिमें अपने अन्तिम दिवस व्यतीत करने का आग्रह म ० वुद्धसे किया था । इसपर म० बुद्धने कुमीना की पूर्व विभूतिका स्मरण कराकर आनन्दको शान्त किया था । वस्तुत: यहापर उन्होने आनन्द के तीव्र मोहको अपने मेंसे हटाने के लिये यह सब उपदेश दिये थे । आखिर उन्होने अपने अन्तिम जीवनका सभ्य निर्दिष्ट करते हुये अनन्दने वहा था 3 Lahigh " आनन्द ' अन तुम कुसीनारामें जागर कुमीनागके ग्ल राजाओसे कहो, 'आजके दिन, हे वासेदुगण, त्रिके अन्तिम पहरमे तथागतका सर्व अन्तिम मरण होगा । हे वागण, कृपालु होओ, यहां कृपालु होओ। इसके व द अपने आपको यह कहने अवसर न दो, हमारे ही ग्राममें तथागतकी मृत्यु हुई और हमो तथागत अन्तिम समयमे दर्शन न कर पाये ' I ..T - १. महापरिने वानमृत AI पृष्ठ ३८ ) २ बुद्धिन् दृष्ड ४. पूर्व पृष्ठ ९९.४ Go non Aaa, and e to in o बुद्धBL हारिनिदान 7 11 •
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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