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{ भगवान महावोरसिंहल मान्यताके आधारसे, भगवान महावीरके अनन्तज्ञानके संबंधमे कहते हैं कि 'ये महावीर अपनेको पापसे रहित बतलाते थे
और यह घोषणा करते थे कि निप किसीको कोई शंका हो अथवा किसी विषयका समाधान करना हो, वह हमारे पास आवे, हम उसको अच्छी तरह समझा लेंगे।' इसका भाव यही है कि भगवान प्राकृत रूपमें अपने धवल केवलज्ञानसे लोगोका पूर्ण समाधान कर देते थे, वे पूर्ण सर्वज्ञ थे-उने सगक होनेसे कोई कारण शेप नहीं था।
इस प्रकार भगवान महावीर और म० बुद्धके धर्मप्रवतक रूपमे भी एक समान दर्शन नहीं होते । भगवान महावीरने सर्वज्ञ होनेपर किसी नवीन मतकी स्थापना नहीं की थी। म० बुद्धन 'मध्यमार्ग' को वोधिवृक्षके निकट जान लेनेपर एक नवीन मतकी स्थापना की थी। जिसप्रकार प्रारम्भसे ही इन दोनो युगप्रधान पुरुषों के जीवन में कोई विशेष साम्यता नहीं थी, उसीप्रकार इस अवस्था भी हमको कोई समानता देखनेको नहीं मिलती। म० बुद्धने अपनी ३५ वर्षकी अवस्थासे ही अपने धर्मका प्रचार करना प्रारभ कर दिया था,' और भगवान महावीरने तबतक कोई उपदेश नहीं दिया जबतक कि उन्होने करीब ४३ वर्षकी अवस्थामें उक्त प्रकार सर्वज्ञता प्राप्त न कर ली। फिर धर्मप्रचारके लिये जो उन्होंने सर्वत्र विहार किया था, वह भी एक दूसरेसे बिल्कुल विभिन्न था।
x स्पेन्स हार्डी, मैनुभल ऑफ बुद्धिज्मः पृ० ३०२. १ बुद्धजोवन (S B.E) भाग १९. २ जैनसूत्र (S B. E.) भाग १ पृष्ठ २१९ और भगवान महावीर पृष्ठ २१३.