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[ भगवान महावीरइस तरह भगवान महावीर सर्वत्र थे और उनका धर्म यथार्थ सत्य था । यह मान्यता केवल जनोंकी ही नहीं है. प्रत्युत बोर
और ब्राह्मण शास्त्र भी इस ही यातकी पुष्टि करते हे ।' एकसार म० बुद्धने स्वयं कहा था --- ___भाइयो ! कुछ ऐसे सन्यामी है, ( अचेलक, आनीविक, निगथ आदि ) जो ऐसा श्रद्धान रखने और उपदेश करते हैं कि प्राणी जो कुछ सुख दुःख व समभाषका अनुभव करता है वह सब पूर्व कर्मके निमित्तसे होता है। और तपश्चग्णसे, पूर्व कर्मके नागसे, और नये ोके न करनेसे, आश्रवके कनेसे कमा क्षय हे ता है और इस प्रकार पापका क्षय और सर्व दुखका विनाश है । भाइयो, यह निर्ग्रन्थ (जैन ) कहते हैं मैंने उनसे पूछा क्या यह सच है कि तुम्हारा ऐसा श्रद्धान है और तुम इसका प्रचार करते हो . उन्होने उत्तर दिया हमारे गुरु नातपुत्त सर्वज्ञ हैं.. उन्होंने अपने गहन ज्ञानसे इसका उपदेश दिया है कि तुमने पूर्वमें पाप किया है, इसको तुम उग्र और दुस्सह आचाम्से दूर करो और जो आचार मन वचन कायसे दिया जाता है उससे आगमी जन्म बुरे कर्म कट जाते हैं इस प्रकार सब कर्म अन्तमें क्षय हो जायगे
१. बौद्ध शखोमें निम्न स्थानोंपर भगवान मावीरकी सर्वज्ञ ।। सीकार की गई है --मजिझमनिकाय ॥२३० और १२-९३; अगुर निक य ३/७४ न्यायबिन्दु अध्याय । अन्तिममें सजनाका निरूण करके उदाहरणमें ऋषम और बद्धपार (महाबोर) का उल्लेख किया है; यथाः सज्ञ आहोवा सज्योर्तिज्ञानादिकमुदिष्टवान् ॥ यथा । ऋरम वर्धमानादिरिति ।' (न्यायबिन्दु ) ब्रह्मण उल्लेख केरल 'पात्र (Keilhorn, V. I.) में मिलता है।
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