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जीवन प्राय. होता ही है । उस से महावीर की दिनचर्या का अनुमान विन पाठक लगा सकते हैं ।
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'कल्पसूत्र' मे लिखा है कि " सूर्योदयके अनन्तर सिद्धार्थं राजा अवनशाला अर्थात् व्यायामशाला मे जाते थे । वहाँ वे कई प्रकार के दण्ड बैठक, मुगदर उठाना आदि व्यायाम करते थे । उसके अनन्तर वे मल्लयुद्ध करते थे । इसमे उनको बहुत परिश्रम हो जाता था । इसके पश्चात् शतपक्क तैल -- जो सौ प्रकार के द्रव्यों से निकाला जाता था और सहस्रपक्क तैल जो एक हजार द्रव्यों से निकाला जाता था-से मालिश करवाते थे । यह मालिश रस रुधिर धातुओं को प्रीति करने वाला — दीपन करने वाला, वलकी वृद्धि करने वाला और सब इन्द्रियों को आल्हाद देने वाला होता था । व्यायाम के पश्चात् वह स्नान करते थे ।" " उपरान्त वह देवोपासना में समय बिताते थे । शुद्ध सात्विक भोजन करके राजकाज मे प्रवृत्त होते थे । इस वर्णन से स्पष्ट है कि भ० सहावीर के पितृगृह का वायुमण्डल बहुत ही शुद्ध और पवित्र था । उसमे मानवी उन्नति के सबही साधन प्राप्त थे । उस पर भ० महावीर तो पूर्व जन्मसे ही अपारपुण्य सचित करके आये थे । उनकी शारीरिक सम्पत्ति अतुलऔर विपुल थी । उनका सौन्दर्य अनुपम था । उनकी बुद्धि का विकास अपूर्व था । वह समचतुरसंस्थान, वज्रवृषभनाराच सहनन वाले शरीर में मति श्रुति अवधिज्ञान को धारण किये हुये संसार में अनूठे थे । वह महती प्रतिभा के धारी तेजस्वी नर-पुंगव थे । उनकी शिक्षा का सामान्य क्रम अनुमान करना एक विडम्वना है । उनका ज्ञान विशेष था । भला सामान्य पुरुष उन्हें क्या शिक्षा देता ? वह सत्साहित्य और कला विज्ञान, शस्त्रास्त्र और राजनीति — सब ही विद्याओं में निपुण थे । १. घंभम० पृ० ११-१२०