________________
उन्होंने सहज में ही सव शास्त्र पढ़ लिये थे। ___महावीरके समान पराक्रमी यवक मे विशेषत्व का केन्द्रित होना स्वाभाविक था। वे राज उद्यानों में राजकुमारों और देवसहचरों के साथ अनूठी क्रीड़ाये किया करते थे। परन्तु उन कीड़ाओं से भी उनका परोपकार भाव अग्रस्थान रखता था। जैनशास्त्र कहते है कि युवक महावीर ने छोटी-सी आठ वर्ष की उम्र से ही जीवों पर दया करने, सच बोलने, चोरी न करने, ब्रह्मचर्य से रहने और अपनी आकांक्षाओं को सीमित रखने का दृढ़ सकल्प कर लिया था। दृढ़ चारित्र रूपी भव्य-भवन की नींव वाल्यकालके शुभ सरकारों के आधार पर ही रक्खी जाती है। युवक महावीर भी संयमी और विवेकी अपनी यवावस्थामे मिलते है । वह लोकोपकार मे अपने तन-सनकी सुध भल जाते है। एक दफा उन्होने सुना कि एक सदमत्त हाथी प्रजा को कष्ट दे रहा है--वह किसी तरह भी पकड़ने में नहीं आता । राजकुमार महावीर सुनते ही भागे गये और लोगों के देखते ही उन्होंने उस खूनी हाथी को निसंद कर दिया। यह तो एक उदाहरण है--उनके जीवन में न जाने ऐसी कितनी घटनायें घटित हुई होंगी-उनका लेखा अब नहीं मिलता । किन्तु शास्त्रों के निम्नलिखित उल्लेखसे यह स्पष्ट है कि उनकी महती परोपकारवृत्ति की प्रसिद्धि नरलोक ही क्या, देवलोकतक फैल गई थी। एक दिन राजसभा से बैठकर इन्द्रराजने राजकुमार सहावीर वर्द्धमानकी उपकार भावना और निर्भीकचर्या की प्रशंसा की। देव समुदाय उसे सुनकर प्रसन्न हुआ। किन्तु एक देवके हृदय मे उसे सुनकर कौतुक उत्पन्न हुआ। वह झट से नरलोकसे अवतरा
और कुण्डग्राम के उस उद्यान में पहुंचा जिसमे राजकुमार महावीर वर्द्धमान अपने सखा-सहचरों के साथ ऑख-मिचौनी खेल रहे थे। देव ने उनके बीचमे एक सहाभयंकर काला नाग