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________________ जब साधु महावीर अर्हतपद को प्राप्त हुये और सर्वज्ञ परमात्मा हो गये. तब वह तीर्थङ्कर भगवान महावीर वर्द्धमान नाम से प्रसिद्ध हुये । वह महती-सभा (समवशरण) में धर्म कहते थे; इसलिये वह 'महतिवीर' थे । वह तीर्थंकरों मे सर्व अन्तिम थे, इसलिये उन्हें 'चरम तीर्थङ्कर' अथवा 'अन्त्यकाश्यप' कहा है । वह 'काश्यप, नामसे अपने गोत्र की अपेक्षा प्रख्यात् थे । लोककल्याणके लिये उनका आदर्श जीवन था, इसलिये वह 'वसुधैक वाधव' कहे गये हैं २ । महामान्य, माहण (ब्राह्मण) आदि अनेक नामों से उनका स्मरण भक्तजनों ने किया है। यद्यपि भ० महावीर के जीवन को हम तीन भागों में बंटा हुआ देखते है, परन्तु हमारे पास ऐसे प्रमाण नहीं हैं । जिनसे हम उनके क्रमिक विकास को स्पष्ट बता सके । महावीर ही क्या ? प्रत्येक महापुरुषके जीवनके विषयमे यही देखा जाता है उनके जीवनका बहुभाग अद्भुत बातों मे ही छिपा रहता है। फिर भी भ० महावीर के विषयमे जैनशाखों के कथन से यह स्पष्ट है कि भगवान् एक समुन्नत समुदार, सुन्दर, सौम्य और सुधीर वीर राजकुमार थे। यद्यपि उनके दैनिक जीवन को जैन शास्त्र चित्रित नहीं करते, परन्तु उनमें नृपसिद्धार्थ का दैनिक जीवन लिखा मिलता है। पिता के चरित्र का प्रतिविम्व पुत्रका - १, 'सन्मति: महतिवीरः महावीरः अन्त्यकाश्यपः । नाथान्वयः वर्धमान: यत्ती मह सांप्रतम् ।।१३६॥' 'वीर: चरमतीर्थकृत्-इति हेमचन्द्र. धनजयनाममाला " समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेहया।' -दशवकालिक १ २. कनड़ी वर्द्धमानपुराण, जैग० २४१३२ ३, जिनसहस्रनाम देखो
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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