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उछलता हुआ देखने का फल यह है कि तुम्हारी कोग्य से अतुल वीर्य का धारक पराक्रमी पुत्र जन्मेगा । (४) श्री अथवा लक्ष्मीदेवी का देखना यह बताता है कि बालक जन्म सिद्ध राज्याधिकारी होगा । (५) दो सुन्दर मन्दार पुष्प की मालायें यही संकेत करती हैं कि गर्भस्थ बालक सुगन्धमय शरीर का धारक यशस्वी होगा । (६) चन्द्र के देखने से प्रगट है कि वह मोहतम का भेदने वाला होगा । (७) सूर्य का दर्शन यह बताता है कि वह भव्यरूपी कमलों के प्रतिबोध का कर्त्ता और अज्ञानान्धकार का मेटने वाला होगा। (=) मीनयुगल देखने से प्रगट है कि अनन्त सुख प्राप्त करेगा । (६) दो घंटों के देखने से मंगलमय शरीरका वारक उत्कृष्ट ध्यानी होगा । (१०) सरोवर का देखने का फल यह है कि वह जीवों की तृष्णा का दूर करेगा । (११) समुद्र देखना यह निर्देश करता है कि वह पूर्ण ज्ञान का धारक होगा । (१२) सिंहासन देखने से निश्चय जानो कि वह अन्तमें परमो - त्कष्ट पद को प्राप्त करेगा । (१३) विमान देखने का फल यह है किं वह स्वर्ग से उतर कर आवेगा । (१४) नागभवन देखने का अभिप्राय यह है कि वह यहाँ पर मुख्य तीर्थ को प्रवृत्त करेगा । (१५) रत्न राशिका देखना यह सूचित करता है कि वह अनन्तगुणों का धारक होगा । (१६) निघू म अग्नि का देखना बताता है कि वह समस्त कर्मों का क्षय करेगा । इस प्रकार प्रियतम के मुख से स्वप्नावली का फल सुनकर त्रिशलादेवी प्रसन्न हुई । वह फल त्रिलोकाधिपति जिनदेव के अवतार को सूचित करने वाला अपूर्व रोमांचकारी था ।
" कुछ दिनों के पश्चात् उच्चस्थान पर प्राप्त समस्त गहो के लग्न के योग्य समय में रानी त्रिशला ने चैत्र शुक्ला त्रयोदशी सोमवार को रात्रि के अन्त समय में जब चन्द्रमा उत्तरा फाल्गुनि नक्षत्र पर था, जिनेन्द्र भगवान् महावीर का प्रसव किया ।