________________
[ ६५ ] भी झलकती थी । देवियाँ पूछत्ती, संसार मे सत्पुरुष कौन है ? रानी उत्तर देती कि जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पुरुषार्थों को सिद्ध करके निर्वाण पाता है वह सत्पुरुष है । जो व्यक्ति मनुष्य जन्म पाकर भी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष पुरुषार्थों को सिद्ध नहीं करता वह कायर है। देवियों पूछती कि कौनसा मनुष्य सिंह के समान उन्नत है और कौनसा नीच है ? माता कहती कि जो मनुष्य इन्द्रियों के साथ २ कामरूपी दुर्धर हाथी को मार भगाते है वे सिंह समान है। और जो सम्यक् रत्नत्रय धर्म को पाकर उमे छोड़ देते है वे नीच हैं। विद्वान् वह है जो शास्त्रों को जान कर पाप, मोह और बुरे काम नहीं करते, विषयों में आशक्त नहीं होते ! कितने उच्च और सुलझे हुये विचार थे ये ! ऐसी रमणी-रत्न की कोख से भला क्यों न नरसिंह महावीर का जन्म होता?
त्रिशलादेवी एक दिन सानन्द शयन कर रही थी। अभी प्रात काल होने में देरी थी। उन्हें सोलह शुभ सूचक स्वप्न दिखाई दिये थे । तीर्थकर प्रभु के गर्भावतार की सूचना देने के लिये ही मानो प्रत्येक तीर्थकर की माता वे शुभ स्वप्न देखती है। रानी त्रिशला उन अनुठे सोलह स्वप्नों को देखकर चकित हो गई। वे उठी। शौचादि से निवृत्त होकर महाराज सिद्धार्थ के निकट राज दरबार मे गई। राजा ने उन्हे अर्धासन पर बैठाया। रानी ने उनसे स्वप्नों का हाल कहा । राजा ने स्वप्न शास्त्र के अनुसार उनका निम्न प्रकार स्पष्टीकरण किया। _वह बोले, प्रियतमे, जो तुमने (१) पहले एक उन्नत चार दांतो वाला हाथी देखा है, उससे यह प्रगट होता है कि गर्भस्थ बालक तीर्थङ्कर के रूप में जन्मेगा। (२) पालतू भाग्यशाली सफेद वैल देखने का भाव यह है कि वह वालक एक बड़ा धर्मप्रचारक होगा। (३) सुन्दर सिंह को आकाश से मुखकी ओर