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( ५७ ) वह 'शालिय' नास से उल्लखित हुये है। श्वेताम्बरीय 'कल्पसूत्र' से प्रगट है कि वैशाली के निकट ही वाणियगास थार । जब भ० महावीर एकदफा वैशाली से विहार करके वणियगाम गये, तो वीच में गंडक नदी को पार करके वह झट से वहां पहुंच गये। कुण्डगाम उसी के पास था । आजकल वह 'वसुकुड' नाम से प्रसिद्ध है।४
इसी कुण्डगाम के निकट कोल्लग-सन्निवेश था। यह स्थान ज्ञात-क्षत्रियों का मुख्य केन्द्र था। आजकल के कतिपय विद्वान् कोल्लग को ही भगवान महावीर का जन्म नगर अनुमान करते है। किन्तु यह अनुमान दिगम्बर और श्वेताम्बर-दोनों ही जैन सम्प्रदायों की मान्यता के विरुद्ध है। जैन मान्यता स्पष्ट कहती है कि भ० महावीर का जन्म स्थान कुण्डग्राम है। उसी का अपर नाम कुण्डलपुर भी है । किन्तु वैशाली, कुरडगाम, कोल्लग आदि स्थान पास-पास थे। इसलिये यह नितान्त प्राकृत और स्वाभाविक है कि भ० महावीर के बाल जीवन और कौमार
, 'अरहा नायपुत्ते भगवं सालिए वियाहिए त्ति वेमि'--
सूत्र कतार २३ श्रवण वेलगोल शिलालेख नं. १ से भी भगवान का सम्बन्ध वैशाली (विशाला) से प्रगट होता है; यथा:-"तदनु श्री विशालयम् ( लायाम् ) जयस्पद्म जगद्धितम् तस्य शासनमच्या प्रवादि मतशासनम् ।" २. 'वेसालिंणयरिं वाणियगामं च णीसाए दुवालस अंतरावा
वासावास उवागए ।' ... कल्पसूत्र ३. 'ततः प्रतस्थे भगवान ग्राम वाणितकं प्रति । मार्गे गएडकिका
माम नदी नावोत्ततार च ||१३६ ॥१०॥ -निषष्ठशलाका ४. कैम्मिन हिस्ट्री ऑफ इण्डिया, पृ० १५०