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की अत्यन्तावश्यकता है । वह भी एक विज्ञान है और उसकी सिद्धि प्रत्यक्ष प्रमाण और तर्क से तीर्थंकर की वारणी में हो चुकी है । इसीलिए तो तीर्थकर महान् है । वह हम आप जैसे मानव होते हैं । किन्तु अध्यात्मबल का पूर्ण विकास करके महामानव हो जाते है और लोक को पूर्ण मुक्त महामानव बनने का मार्ग निर्देश कर जाते हैं । वह तीर्थकर मानव हैं ! मानव का आदर्श मानव ही होता है । तीर्थकर सब मानव होते हैं। योगसाधना करके वह वाह्य संसर्ग और उपाधि का अन्त करके शुद्ध-बुद्ध हो जाते हैं और मानव शरीर मे ही जीवन्मुक्त परमात्मा होकर चमकते है । भगवान् महावीर भी इसी प्रकार के एक महामानव तीर्थंकर थे— अनेक भवों की निरन्तर साधना से उन्होंने यह
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महान् पद पाया था । आइये, उनकी पूर्वसाधना का दिग्दर्शन करे ।
(४) साधना के पथ पर !
'काल अनन्त भ्रम्यो जग में, सहिए दुख भारी ! जन्म मरण नित किए पापको हो' अधिकारी ॥'
- सामायिकपाठ
संसारी जीव अनन्तकाल से संसार मे जन्म-मरण के दुःख उठा रहा है। शरीर में ममत्व बुद्धि रखने के कारण उसे संसार की चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ता है । भगवान् महावीर का जीव भी अनन्तकाल से संसार में भटक रहा था । एक