________________
( १८ )
शक्ति भी अर्न्तनिहित है । जब एक अणुबम बड़े २ नगरों को भस्म कर सकता है; विद्य नकणों आदि पुद्गलों के प्रभाव से शब्द का प्रसार रेडियो द्वारा सारे लोक में किया जा सकता है और हवा में उड़ा जा सकता है, तब वैसी ही विलन वार्ते योगनिरत मानव शरीर के द्वारा होने में आश्चर्य क्या ? तीर्थकर के शरीर के पुद्गल परमाणु भी विशुद्ध दशा को प्राप्त होकर लोकोपकार में कारणभूत बनें तो आश्चर्य क्या ? कारबनपुद्गल-परमाणु विशिष्ट विशुद्धि को पाकर हीरे में परिणत होकर चमकते हैं । श्रपूर्व ज्योति होती है उनकी ! मानव शरीर में भी कारवन मिलता है - शरीरगत वे पुद्गल परमाणु विशुद्ध होकर हीरे से भी अधिक प्रकाशमान होवें तो विस्मय ही क्या ? तीर्थकर शरीर की ज्योति इसीलिए महान् होती है । नियत काल पर तीर्थकर की धर्मदेशना होती है, जिसे दूर दूर तक हर कोई समझ लेता है। ऐसी ऐसी लोकहित की अपूर्व बातें सुनकर जड़वाढ़ी लोग उसे अतिशयोक्ति मान बैठते हैं । किन्तु यह अध्यात्मवाद को न जानने का ही परिणाम है । आत्मवल के महत्व को पहिचान न सकने का फल है । आत्मवल के समक्ष सब वल निःसत्व होते हैं । इसका प्रभाव, परन्तु समझते वे ही महाभाग हैं, जो आत्मा और परमात्मा के स्वरूप को समझ चुके
। वह कहने-सुनने की बात नहीं - अनुभवगत वस्तु है । तत्ववेत्ता स्पिनोज्जा (Spinoza) ने ठीक ही कहा है कि To define God is to deny Him अर्थात् परमात्मा की व्याख्या करना उसे अस्वीकार करना है । श्राज अध्यात्मवाद को समझने
1