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भ० महावीर सम्बन्धी तीर्थ और पुरातत्व | “जिण जणमणिख्खचण, खाणुपत्ति मोख्ख संपत्ति । णिसिहीसु खेतपूजा, पुव्यविहाणेण कायव्वा ।। ४५२ ॥ " - श्री वसुनदि श्रा० जहाँ-जहाँ संतों के चरण-कमल पड़ते है, वहाँ-वहाँ के लोग अपने भाग्य को सराहते हैं । वह भूमि ही उन महापुरुष की पदरज से पवित्र हो जाती है । उस क्षेत्र का वातावरण ही एक विशेषता प्रगट करने लगता है और अपने प्रेमी के लिए प्रोत्साहन का कारण बनता है । इसी अनुरूप भ० महावीर जिस स्थान पर पहुँचे, वह उनकी पदरज से पवित्र हो गया और भक्तजनों ने उनकी स्मृति को सजीवित रखने के लिए वहाँ पर मंदिर - मूर्ति या स्तंभ रूप कोई स्मार्क बना दिया । उनमें से कई स्थान तीर्थवत् पूजे जाने लगे और कई भुला भी दिये गये। आज जिन तीर्थों और स्थानों का पता चलता है, उनकी तालिका निम्नप्रकार है:
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पापानगरी पावा का प्राचीन नाम था । भ० महावीर का निर्वाण यहां से ही हुआ था । इसका वर्णन पहले लिखा जा चुका है । यह निर्वाण तीर्थ होने के कारण पूज्य है । अहिच्छत्र वरेली जिले के अन्तर्गत अतिशय क्षेत्र है । संभवतः भ० महावीर का समवशरण यहा आया था। यहां प्राचीन मूर्तिया निकली हैं ।
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*मामलकल्पा स्थान पश्चिम विदेह मे श्वेताम्बी के समीप था । श्वेताम्बरीय शास्त्रों मे लिखा है कि यहां के अंबसाल चैत्य में भ० महावीर का समवशरण रचा गया था ।