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________________ ( ३४२ ) पादुकाभच ( ई० पू० ३६७-३०७ ) दो निर्ग्रन्थ श्रमणों के भक्त थे । और उनके लिए उन्होंने अनुराधापुर मे जिनमंदिर बनवाया था ।१ प्रो० सिल्वा लेवी के मतानुसार जैनप्रभाव जावा सुमात्रा में भी कार्यकारी था । २ सारांश यह कि भ० महावीर का धर्मप्रभाव सारे भूमंडल में व्याप्त रहा है । आधुनिक काल में सर्व श्री वीरचंद गांधी, जुगमंदरलाल जज और चम्पतराय जी वैरिस्टर सदृश जैन विद्वान् यूरुप और अमेरिका में भ० महावीर का सन्देश फैला चुके हैं । अव श्री अखिल विश्व जैन मिशन द्वारा विदेशों में प्रचार किया जा रहा है। सचमुच भ० महावीर की: - "वचन- किरन सौ मोहतम-मिट्यो महा दुखदाय | वैरागे जगजीव बहु — काल लब्धि चल पाय ॥ सम्यक्दर्शन आदयो— मुक्ति तरोवर मूल । शंकादिक मल परिहरे— गई जन्म की सूल ॥" - 1. Indian Seet of the Jains, p. 37. २. विशाल मारत, भा० १ खंड २ पृ० १११
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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