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( ३४१ ) अपने उद्योग में असफल रहे !१ परंतु अशोक की धर्मयात्रायें जैन प्रभाव से अछूती नहीं थी। उसने विदेशों मे भी धर्मप्रचार किया था। यनानी लेखक हेरोडाटेस ( Herodotus) ने मिश्र के निकट इथ्योपिया ( Ethiopia) मे दि० जैन श्रमणों को ( Gymnosophists ) देखा था ।३ ईस्वी प्रथम शताब्दि मे एक श्रमणचार्य (दि० जैनाचार्य) भडोच से यूनान गये थे
और वहां धर्मप्रचार करते हुये मृत्यु को प्राप्त हुये थे। उनकी निषिधिका अथेन्स ( Athens ) में विद्यमान थी।४ अन्यत्र यह भी कहा गया है कि जैन श्रमण रूम, यूनान और नार्वे तक गये थे। मौर्य सम्राट सम्प्रति और शालिसूक ने निर्ग्रन्थ श्रमणों को अफगानिस्तान, अरब और ईरान में धर्मप्रचार के लिये भेजा था । डबोई और फरलांग सा० का मत है कि एक समय सारी मध्यएशिया में जैनधर्म फैला हुआ था ७ चीनी तुर्किस्तान के गुफा मंदिरों में दि० जैनधर्म सम्बन्धी चित्र भी बनाये गये थे, यह बात प्रो० ल० कोक ने प्रगट की थी। लंका में सम्राट
, सातवां स्थंभलेख देखो। २. जैनधर्म और सम्राट अशोक नामक पुस्तक देखो। ३. ऐशियाटिक रिसर्चेज़, भा• ३ पृ. ६ ४. इंडियन हिस्टॉरीकल कार्टी, भा० २ पृ. २१३ ५. भम०, पृ०७ ६. परिशिष्ट-पर्व और EHI, 202-203 & JBORS ७. Dubons, Descriptions....of the people of India....,
Intro- 1817 & J.G. R. Furlong, 'Short Studies in Science of Comparative Religions (1897),
p. 67. 5. N. C. Mehta, 'Studies in Indian Painting. p.2