________________
( ३२७ )
संघ में यह विरोध श्रमणों के बाह्य भेष और क्रिया विशेष को लक्ष्य करके ही खड़ा किया गया, जो सचमुच धर्मभाव के अनुकूल नहीं है । उस पर मजा यह कि श्रामण्य के लिये अचेल - are अर्थात् नग्न रहना दोनों ही सम्प्रदायों के शास्त्रों में मान्य रहा है | दिगम्बर जैन शास्त्रों में इसे मुनि के अट्ठाईस मूलगुणों से एक माना है और वही जिन लिंग कहा गया है । श्वेताम्वरीय 'आचाराङ्गसूत्र' मे भी भिक्षुके लिये परमधर्म आचेलक्य ही प्रतिपादा गया है, अर्थात् साधु को दिगम्बर वेष धारण करना श्रावश्यक बतलाया है | २ उनके मतानुसार प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने इसी आलस्य धर्म का प्रतिपादन किया और अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर ने भी उसी को धारण किया | ३ श्वेताम्बरीय शास्त्रों में राजा उदयन, ऋषभदत्त आदि मुनियों के विषय मे लिखा है कि उनको नग्न वेष धारण करना पड़ा था ।४ भ०
1. जघजाद रूव जादं उप्पाडिद केसमं सुगंसुद; रहिदं हिसादीदी अप्प डिकम्मं वदि लिंगं ।।"
"
-प्रवचनसार ३३५
२. जे चेले परिषसिए तस्सणं भिक्खुस्सयो एव । १५१श्राचाराह; 'तं वोसज वत्थमण्यारे' - २१० प्राश्चारात, प्रो० नैकोवी ने 'प्रवेल' शब्द का अर्थ नग्नता ( nudity) किया है । (Jaina Sutras, S.B.E., I. p. 56)
३. कल्पसूत्र, Jaina Sutras S. B. E., Pt. I p. 285
४. ऋषभदत्त के विषयमें कहा गया है कि जिस प्रयोजन के लिये उन्होंने नग्मता धारण की थी, उस अर्थ - निर्वाण को प्राप्त किया । "जस्साए कीरइ नग्गमावो नाव तमह भारोहेइ ।" भगवतीसूत्र, शतक है उद्देशक ३३ ) उदयन कथा में यही बात उदयन के विषयमें दुहराई गई है।