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________________ ( ३१३ ) दिगम्बर मान्यता का पोषक है । अतः यह मानना ठीक है कि भ० पार्श्वनाथ नग्नवेषमे रहे थे और उनके साधु शिष्य भी नग्न रहते थे। बौद्धग्रंथ 'महावग्ग' मे ऐसे 'तित्थिय' श्रमणों का उल्लेख है जो नग्न रहते थे। यह श्रमण भ० महावीर से पहले के जैन साधु थे२ । सचमुच भ० महावीर और भ० पार्श्वनाथदोनों ही दिगम्बर वेष मे रहे थे-मोक्ष पाने के लिये बाह्य लिङ्ग दिगम्वरत्व है- यह धर्म विज्ञान का सिद्धान्त है। प्रत्येक तीर्थकर और मुनि इस दिगम्बर भेष मे रहता है । अव रही वात चार व्रतों की, सो यह श्वेताम्बर मान्यता भी तथ्यपूर्ण प्रतीत नहीं होती। मालूम ऐसा होता है कि प्राचीन बौद्ध शास्त्रों मे प्रत्येक धर्म प्रवर्तक की साधुता की द्योतक चार बातों का विधान देखकर भ० पार्श्वनाथ के विषय मे वैसा ही विधान कर दिया गया, किन्तु बौद्धग्रंथ मे 'चातुर्याम् संवर' का भाव चार व्रतों से नहीं है, बल्कि उसमे भ० महावीर की साधुता को बताने के ... ऋग्वेद १०११३६; धराहमिहिरसंहिता १६६१ व ४१५८, महा भारत ३१२६-२७, दिव्यावदान पृ. १६१, जातकमाला भा० । पृ. १४५, विशाखा वस्थ धम्मपदस्थ-कथा, भाग , खंड२ पृ० ३८४; डायलाग्स प्राव बुद्ध ३,१४, महावग्ग ८२, ३३१,३८।१६; बुल्लवग्ग ४,२८,३, संयुत्तनिकाय २,३,१०,७ भारतीय पुरातत्व से भी जैनसंघ में दिगम्बरस्व की मान्यता स्पष्ट है । मोहन-जो दहों से प्राप्त १००० वर्ष पहले की जैनियों सदृश मूर्तियां नग्न हैं । उस पर सब ही प्राचीन जिन प्रतिमायें नग्न मिलती हैं-श्वे० मान्यता की मूर्तियां मी पहले नग्न होती थीं। विशेषके लिये हमारा अंग्रेजी लेख 'इण्डियन ऐर्टीकरी' १९२६-३. और 'प्रो० काने अभिनन्दम अन्य' (Prof. Kane) में देखो। २. भ. महावीर और म० बुद्ध ( सूरत ) प० २३७.२३८
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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