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( ३०१ ॥ को क्रान्तिकारी साहसी बनाने के लिए ही जिनभगवान् का उपदेश है । वह प्रत्येक पदार्थ को प्रकाश में लाता है। यही कारण है कि अन्धकार मे रहने वाले उस पर यथाशक्य प्रहार करते हैं; परंतु वह ज्ञान-सूर्य अविचल प्रकाशित ही रहता है । असत्य के आवरण मे सत्य कभी भी लुप्त नहीं होता! योग और चमत्कार की बाते भी लोगों को बहकाने की चीजे हैं । मानव के लिये सारभूत पदार्थ तो मात्र उसका आत्म स्वभाव है। मन-वचनकाय योगों की विधिवत् प्रचलन क्रिया और उनकी विजय ही सच्चा योग है । वह परम कल्याण कर आत्म-स्थिति जिनेन्द्रोपदिष्ट सम्यग् श्रद्धा-ज्ञान और चारित्र का पालन करने से ही नसीब होती है। जिनोपदेश का सार यही है। मानव समझे और आगे