________________ ( 300 ) "अपने में धर्मवृत्ति जागृत करने के लिए मनुप्य को चाहिए कि वह सब जीवों से मैत्रीभाव रक्खे, गुणवान् पुरुषों के प्रति प्रमोदभाव रक्खे, दुखी जीवों के प्रति दयाभाव रक्खे और जो द्रोही हों उनके प्रति उदासीन हो जावे!" ____ "हमेशा यह याद रक्खो कि नीव के लिए चार बातें अतीव दुर्लभ हैं / (1) मनुष्य जीवन (2) सम्यक् धर्म (3) सम्यक् श्रद्धा और (4) सम्यक आचरण " ___ "यह दुर्लभ मनुष्य पर्याय जब अनायास मिली है, तो इसे व्यर्थ न गंवाना चाहिये-दुस्संगति में पड़ कर उसे नष्ट नहीं करना चाहिये, बल्कि आत्मविकास के मार्ग में अग्रसर होना चाहिए।" यह लिनेन्द्र महावीर के दिव्योपदेश का सार है। यह सीधा और सच्चा सर्वहितकर उपदेश है। इस में न तो जिन भगवान ने आज्ञा की है और न प्रार्थना / आज्ञा, प्रार्थना और भय-यह बलायें उनसे दूर हैं। यही कारण है कि भ्रम में पड़ कर लोग भगवान के यथार्थ उपदेश को समझने में ग़लती करते हैं। ऐसे लोग ऐशो आराम को ही मनुष्यत्व समझ बैठते हैं और संयमी जीवन को अनावश्यक मानते हैं। कई मनुष्यों ने तो आराम को ही मुक्ति माना है। परंतु इन्द्रिय वासना तृप्ति जनित सावारूप क्षणिक अनभव सच्चा सुख नहीं है, यह भलकर वे लोग नीतिअनीति और धर्म अधर्म की कक्षायें बनाते हैं। मनुष्यों को नाना प्रलोभन देकर उन्हें सासारिक बन्धनों में फंसाते हैं। मनुष्य साहस और विवेक को भूल जाते हैं। वे वैसे ही मानवों के बीच में उत्पन्न हुचे और वैसों ही के विचाररूपी अन्न से पले हैं। इसलिये वे इन संसार-बन्धनों को तोड़ने में डरते हैं ! विन्तु संसार वर्द्धक लौकिक नीति और लौकिक धर्म तोड़नेउसका संहार करने और पदार्थों का सत्य स्वरूप बताकर लोगों