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वहाँ उन्हें बुद्ध से श्रायु व दीक्षा में अल्पवयस्क लिखा है और बुद्ध को उस समय अपना धर्म प्रचार करते हुये सात वर्ष हो चुके थे | इस विवरण से स्पष्ट है कि म० वुद्ध भ० महावीर से उम्र मे वडे थे - उनका जन्म भ० महावीर से पहले हो चुका था । कितने वर्ष पहले हुआ, यह बताना कठिन है । तो भी यह प्रगट है कि म० गौतमबुद्ध के जीवन मे प्राय: ५० से ७० वर्ष के मध्यवर्ती काल की जीवन घटनाये नहीं-सी मिलती हैं । इस प्रभाव का कारण म० बुद्ध के जीवन पर भ० महावीर की सर्वज्ञ दशा का प्रभाव हो सकता है। सचमुच बात भी ऐसी ही जंचती है, क्योंकि जब भ० महावीर सर्वज्ञ होकर धर्मोपदेश करने लगे थे तब म० बुद्ध की आयु लगभग ४८ वर्ष की होना सम्भव है । बुद्धदेव की ५० वर्ष की अवस्था से वीर-धर्म-चक्र प्रवर्तन का प्रभाव अवश्य कार्यकारी हो चला था । यह बात तो स्वयं बौद्धयों से प्रगट है कि भ० महावीर के सर्वज्ञ होने के पहले ही म० गौतमबुद्ध अपने 'मध्यमार्ग' का प्रचार करने लगे थे १ । और म० गौतमबुद्ध के प्रसंग में यह लिखा जा चुका है कि गौतमवुद्ध के जीवनकाल में ही भ० महावीर का निर्वाण हो चुका था । उस समय गौतमबुद्ध सामगाम में मौजूद थे । पावा के चड नामक व्यक्ति ने इस दिव्य घटना को देखा था । वह जल्दी से मल्लदेश की राजधानी सामगाम को गया और
१. मज्झिमनिकाय में 'निगंठपुत्त संश्चक' के कथानक से स्पष्ट है कि युद्धदेव के धर्म प्रचार के समय म० महावीर कार्यक्षेत्र में अवतीर्ण नहीं हुए थे । (PTS. 1, 225) 'संयुक्त निकाय ' (१११६८) में लिखा है कि बुद्ध धपने को 'सम्मान' कैसे कहने लगे, जबकि निगठनातपुत्त अपने को वैसा नहीं कहते । इससे भी यही स्पष्ट है कि म० महावीर के धर्मप्रवर्तन समय छदमस्त ही थे । वुद्ध