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________________ (२४) शाक्यपुत्तियमित कैसे है जो शीत और प्रोम कालांकी तरह वास्तु में भी गमनागमन करते है ? वह न किल्ला को पैरों तले रोदते हैं, बनम्मतिकाय जीवों की विराधना करते हैं, अनन्त सूक्ष्म जीवों के प्राणों का व्यपरोपण करने हैं । तीर्थक श्रमण इस ऋतु मे एकान्तवास करते हैं-उनका गमनागमन सीमित हो जाता है। बुद्धदेव जब इस बात को जानते हैं तो वर्षा ऋतु पालने का नियम बना देते हैं । इस उद्धरण में हरितकाय, वनस्पति और सन्मूर्खन जीवों की विराधना का उल्लेख महत्वशाली है । जैनसिद्वान्त में इनका उल्लेख है और जैनी इनकी रक्षा का पूरा ध्यान रखता है । 'हरी' (हरित्काय ) न खाने का नियम जैनियों के छोटे बच्चे भी करते हैं। इस प्रकार के उल्लेख इस बात के प्रमाण हैं कि उस समय जनता मे जैनधर्म के सिद्वान्त विशेप प्रचलित थे और उनका प्रभाव वौद्धसंघ पर पड़ा था। भ० महावीर का निर्वाण म० गौतमवुद्ध के जीवनकाल में हुआ था-बुद्धदेव भगवान् के निर्वाण के पश्चात् सभवत दो से पाच वर्ष तक जीवित रहे थे । वौद्ध ग्रथों में स्पष्ट लिखा है कि जब बुद्धदेव तथागत शाक्यभूमि को जा रहे थे, तब उन्होंने जाना था कि पावा मे नातपुत्र महावीर का निर्वाण हो गया था । इस प्रकार भ० गौतम बुद्ध का सम्बन्ध भ० महावीर से स्पष्ट होता है । बुद्धदेव वौद्ध धर्म के संस्थापक हुये, जबकि भ. महावीर प्राचीन तीर्थङ्कर परम्परा के अन्तिम रत्न थे-उन्होंने जैनधर्म की स्थापना नहीं की, बल्कि उसका पुनरुत्थान किया। उनके धर्मोपदेश एव प्राचीन निर्ग्रन्थ परम्परा से म० वुद्ध ने वहुत कुछ लिया-यही कारण है कि उनके वाक्यों में जैनसिद्वातों की झलक दिखती है। १. Vinaya Texts (SBE. XIII) pp 239-298
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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