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________________ ( २७२ ) जीवन घटनाओं का उल्लेख नहीं के बराबर मिलता है- यह काल प्राय. घटनाओं के उल्लेख से कोरा है। इस अभाव का कारण भ० महावीर के धर्मप्रचार का प्रभाव है। बौद्ध ग्रन्थ 'सामगामसुत्तन्त' में एक प्रसंग इस अनुमान को पुष्ट करता है। उसमे लिखा है कि पावा मे भ० महावीर के मोक्षगमन की वाता 'जव म० बद्ध के शिष्य आनन्द ने सुनी तो वह खूब हर्पित हुए और बड़ी उत्सुकता से यह समाचार सुनाने के लिये मर वह के पास दौड़े गये। बौद्धभिक्षु आनन्द का यह हर्षमान और उत्कराठा इस बात का द्योतक है कि वौद्ध समुदाय में भः महावीर का अन्तित्व आतङ्क लाये हुए था। अवश्य ही वौद्ध सघ को भ० महावीर के धर्म प्रचार से हानि उठानी पड़ी थी। इसीलिये आनन्द प्रसन्न हुए कि मार्ग की एक वाधा दूर हुई! वद्धदेव को यह दृढ़ विश्वास था कि मनुष्य पूर्ण ज्ञानी वनने की शक्ति रखता है । और उन्हे यह भी विश्वासे शकि पूर्णज्ञानी बने विना लोक का सच्चा हित कोई नहीं साध सकता! उन्हें पूर्ण बानी वनने की तीव्र इच्छा थी और चमकते हुये शब्दों में उन्होंने कहा था कि वह सर्वव्यापी श्रेष्ठ आर्य ज्ञानका महान् और विविक्त दर्शन है जो मनुप्यकी समझ में नहीं आ सकता, इसकी प्राप्ति के लिए उन्होंने अपना मव्यमार्ग प्रगट हाय में भोजन करने लगे और कुर तृ'बी वा कमंडल रखने लगे। उह ने इनका भी निषेध किरा । (VT. p. 245) देवदत्त ने मिधुओं को वन में रहने, मांस न बाने और अधिक संयमी जीवन बिताने पर जोर दिया या। (Ibrd p.p. 324--325 & Saunders, GB., pp.72-73). २. सिप विगनढेर सा. ने इस काल को (An almost complete blank ) लिखा है।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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